स्कूली छात्रों द्वारा अपराध करना कोई नई बात नहीं है. दिल्ली के निकट गुरुग्राम के रेयान स्कूल के 11वीं के छात्र द्वारा दूसरी कक्षा के बच्चे की हत्या केवल इसलिए कर देना कि उस से परीक्षाएं स्थगित हो जाएंगी कोई ऐसी अनोखी बात नहीं कि इस पर आज के संचार माध्यमों को कोसा जाए. जहां भी लोग होंगे वहां अपराधी भी होंगे ही और यह अपराध करना कुछ बचपन से ही सीखने लगते हैं.
ऐसे माता पिताओं की कमी नहीं है जो बच्चों को मारनेपीटने के अपने बुनियादी हक का हर समय इस्तेमाल करते हैं. इन घरों के बच्चों के मन में गुस्सा, बदले की भावना, कुंठा, रोष, हताशा, विवेकशून्यता बहुत पहले से पैदा हो जाती है. बहुत छोटे बच्चे भी मातापिता की शह पर या प्राकृतिक कारणों से मारपीट में आनंद लेने लगते हैं. इन में से कुछ मातापिता की सही शिक्षा से सुधर जाते हैं, तो कुछ उन्हीं के और वातावरण के कारण और ज्यादा बिगड़ जाते हैं.
रेयान स्कूल के इस 11वीं कक्षा के छात्र के बारे में बहुत कुछ लिखना सही न होगा पर इस घटना पर कोई अचंभा करना भी गलत होगा. हर स्कूल में हमेशा से इस तरह के छात्र रहते रहे हैं. जब फौर्मल शिक्षा नहीं थी तब इस उम्र के किशोर गैंगों के हिस्से बन जाते थे. भारत में ही नहीं, अतिशिक्षित यूरोप व अमेरिका में भी किशोर अपराधियों के गैंग उत्पात मचाते रहते हैं. लड़कियां भी उन के साथ होती हैं और ये लड़केलड़कियों और बड़ों को परेशान ही नहीं करते, लूटते भी रहते हैं. नकल का विरोध करने पर अध्यापकों को धमकियां देना तो बहुत पुरानी बात है.