लड़की की ससुराल कितनी भी संपन्न क्यों न हो, फिर भी उसे पीहर से कुछ पाने की चाह रहती है और यह चाह उसे बुढ़ापे तक घेरे रहती है. मगर यह लेनदेन जब तक सही ढंग से होता है तब तक तो ठीक, लेकिन जब घर वालों में आपस में ही दुरावछिपाव होने लगता है तो यह आंखों में खटकने लगता है.
कुसूरवार मां बेटी दोनों
मेरे दूर के रिश्ते की एक मौसी हैं. एक बार मौसाजी मुंबई गए. वहां से 8-10 मीटर कीमती कपड़ा लाए, फिर उस कपड़े को मौसी को देते हुए उन्होंने सख्त हिदायत दी कि उन्हें पूछे बिना वे इसे किसी को न दें. कुछ समय बाद मौसाजी को बेटी की ससुराल जाना पड़ा. उन्होंने सोचा कि अपनी नातिन के फ्रौक के लिए उस कपड़े से थोड़ा कपड़ा ले जाता हूं. अत: उन्होंने मौसी से कपड़ा मांगा. मगर कपड़ा देख कर उन का माथा ठनका, क्योंकि वह तो दोढाई मीटर से ज्यादा न था. उन्होंने मौसी से पूछा तो वे बोलीं, ‘‘कपड़ा लाए 10 महीने हो गए हैं. आप ही कुछ सिलाने को दे कर भूल गए होंगे और कहां जाएगा?’’
खैर, मौसाजी उस बचे कपड़े को ले कर ही चले गए. बेटी के घर पहुंचते ही आंगन में अपनी दोहती को उसी कपड़े की मैक्सी पहने खेलते देख उन का बेटी से मिलने का सारा जोश ठंडा पड़ गया. उन्हें अपनी पत्नी पर बड़ा क्रोध आया जिस ने उन से छिपा कर कपड़ा बेटी को दे दिया और पूछने पर अनभिज्ञता जाहिर कर दी. वे इस बात से इतना खिन्न हुए कि अपनी बेटी को बिना कुछ दिए लौट आए. घर आ कर पत्नी से खूब झगड़ा किया.