अपनों के बिना जीना सीखिए. कोविड-19 ने पहले घरों में  बंद कर के परिवारों को दूसरों से अलग किया अब बेसमय की मौतों ने अपनों में से 1-2 को छीन कर बिना उन के जीने पर मजबूर कर दिया है. कुछ कोविड के कारण कुछ सामाजिक बदलाव के कारण अब रिश्तेदार रिश्तेदार नहीं रह गए, दोस्त दोस्त नहीं रह गया. अगर कोई कोविड से चला गया तो अकेले ही उस की भरपाई करनी होगी, किसी का हाथ पीठ पर नहीं आएगा, किसी के 2 शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे.

जब दहशत का माहौल होता है तो लोग दुबक जाते हैं पर यही समय होता है जब दुबकने के समय किसी का हाथ साथ में हो, पर यह दिख नहीं रहा. कोविड की दहशत कि मैं किसी के पास गई तो मु झे कोविड न हो जाए तो घर में ही मर जाएंगे, क्योंकि कोई न अस्पताल ले जाएगा न वहां जगह मिलेगी.

यहां तक कि मरने के बाद भी मरी गाय की तरह कचरा गाड़ी में पटक कर 4 और लाशों के साथ जला दिया जाए तो बड़ी बात नहीं. यह डर किसी को धैर्य बंधाने से रोकता है.

समाज को पढ़ाया गया है कि तू अकेला आया है, अकेले ही जाएगा. गीता बारबार कहती है यह बंधुबांधव सब छलावा हैं. फिर अर्जुन को बहकाती हुई वही गीता दोहराती है कि तू कहां मरने वाला है, मर तो तू पहले ही चुका है. तू मरता है तो भी तेरी आत्मा नहीं मरेगी, क्योंकि आत्मा तो नश्वर है.

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