बलात्कार के मामलों की गिनती बढ़ रही है पर इस के साथ ही उन मामलों को भी बलात्कार कहा जाने लगा है जहां युवती ने अपनी मरजी से युवक के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. देश के थानों में सैकड़ों ऐसे मामले दर्ज हैं जिन में शिकायतकर्ता युवती का कहना है कि उस का अभियुक्त के साथ सालों तक संबंध रहा. अभियुक्त विवाह का वादा करता रहा फिर मुकर गया. इसलिए यह संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है.

इंडियन पीनल कोड की धारा 375 में बलात्कार के अपराध की परिभाषा दी गई है, जिस में सहमति से हुए यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना गया. पर अगर सहमति बहलाफुसला कर या चाहने के लिए राजी करने के नाम पर ली गई है तो यह सहमति नहीं मानी जाएगी. इस प्रावधान का इस्तेमाल अब लड़कियां गुस्से में जानबूझ कर इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन का कहना है कि न तो वे सुख से जीएंगी न जीने देंगी.

अगर लड़कियों की मरजी होती है तो वे जब चाहें प्यार, दोस्ती या लिव इन और लगातार बने यौन संबंधों को छोड़ कर जा सकती हैं. पर यदि लड़के ऐसा करें तो अब लड़कों को थानों में लाइनें लगानी होती हैं. केरल के एक मामले में एक लड़के ने, जो विवाहित था, अपनी मुसलिम प्रेमिका से संबंध बनाए. दोनों साथ रहने लगे पर चूंकि लड़का अपनी पत्नी को तलाक न दे पाया, युवती ने आरोप लगा दिया कि उसे यह कह कर झांसे में रखा गया कि उस का तलाक हो चुका है.

इस मामले में और पेच भी हैं और बहुत से अनुत्तरित सवाल भी. पर मुख्य बात यह है कि जब बालिग लड़की बिना जोरजबरदस्ती के एक जानपहचान वाले युवक के साथ घूमफिर रही हो, घंटों फोन पर बातें कर रही हो, जगहजगह होटलों में दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हों, वहां बलात्कार का मामला दर्ज भी कैसे हो सकता है?

बलात्कार का मामला दर्ज होने का मतलब है खाकी और काली वरदी वालों की बन आना. खाकी वरदी वाली पुलिस तुरंत न केवल लड़के बल्कि उस के दोस्तों और घर वालों को भी बंद करने पर आमादा हो जाती है, तो काले कोट वाले वकील मामले को लंबा लटकाने के लिए हर तरह के बहाने बनाते हैं. लड़के की रातें जेलों में कटती हैं और उस के घर वालों की मकानजायदाद बेच कर पैसे गिनने में.

शारीरिक संबंध प्रकृति की देन है, वे चाहे विवाहित लोगों में हो, अविवाहितों में हो या एक विवाहित और एक अविवाहित में हो. जब तक रजामंदी है तब तक अपराध बनता ही नहीं है. मारपीट, जबरदस्ती, नशा कराने आदि के बाद यदि बलात्कार हो तो ही अपराध माना जाना चाहिए और तब ही पुलिस हरकत में आए और वह भी तब जब पीडि़ता सीधे पुलिस के पास जाए. 2-4 सप्ताहों, महीनों या सालों बाद की गई शिकायत पर ध्यान देना प्रकृति के बीच आ कर यौन आनंद से खिलवाड़ करना है.

कुछ अदालतों ने अब लड़कों को छूट देनी शुरू कर दी पर यह छूट भी तब मिलती है जब महीनों जेल काटी जा चुकी हो और वकीलों पर खर्च हो चुका हो. सहमति का अधिकार छीनने का हक क्या समाज और कानून को है?

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