अकेली लड़कियां जहां अपने मांबाप की लाड़लियां होती हैं, वहीं उन का प्यार बांटने वाला उन का कोई सिबलिंग नहीं होता. मातापिता अपना सारा प्यार बेटी पर ही लुटाते हैं. लेकिन फिर भी इकलौती लड़कियां जिम्मेदारी के पहाड़ के नीचे दबने लगती हैं. जानें कैसे :

जन्म से ही इकलौती बेटी घर की दुलारी और मम्मीपापा की नन्ही राजकुमारी होती है. नतीजतन, उस के मातापिता ओवर प्रोटेक्टिव हो जाते हैं. वे उस की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं और कोशिश करते हैं कि अपनी बेटी की हर मांग पूरी करें, क्योंकि वह उन के जीवन की सब से कीमती चीज होती है.

यह स्थिति बचपन तक तो ठीक है लेकिन जैसे जैसे वह लड़की बड़ी होती है तो भाई या बहनों के नहीं होने से, इकलौती बेटियां अपने कंधों पर एक बहुत बड़ा बोझ लिए होती हैं। एक बार जब वे बड़ी हो जाती हैं, तो उन्हें लगता है मातापिता ने पूरी जिंदगी मेरे लिए इतना किया है तो अब बढ़ती उम्र में उन का सहारा बनना मेरा ही फर्ज है.

लड़की के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ काफी बढ़ जाती हैं जिस का उसे धीरेधीरे पता चलता है. हालांकि आजकल 1 बेटी वाले घर बहुत होने लगे हैं. लेकिन जहां लड़की 20 साल की होती है उस पर बहुत सारे बोझ आ जाते हैं. 15 साल तक तो उसे लड़की की तरह पाला जाता है. लेकिन 15 से 20 के बीच में उसे घर का बेटा बनाने की कोशिश की जाती है. इस उम्र तक आतेआते उसे बेटा बनना पड़ता है. क्योंकि मांबाप न चाहते हुए भी बेटी में अपना बेटा कहीं न कहीं तलाश करने लगते हैं जो उन्हें बढ़ती उम्र में से संभाल लें.

मां को कोई बीमारी हो गई हो, घर में सफाई आदि का काम करना है, चौकीदार, घर की बाई को हैंडल करना है, ग्रोसरी लेनी है इन सब में उस की जरूरत पड़ने लगती है। खासतौर पर जब वह स्कूटी चलने लगती है तो उस से बहुत सारी चीजे ऐक्सपैक्ट की जाने लगती हैं.

तुम मोबाइल का बिल भर दो, पानी बिजली का बिल भर दो, क्रैडिट कार्ड बना दो, इस वजह से लड़कियों को मैच्योरिटी आ जाती है. ये लड़कियां उन लड़कियों से कुछ अलग हो जाती हैं जिन के यहां कई सिबलिंग हैं या भाई हैं. सिबलिंग वाली लड़कियों और बिना सिबलिंग वाली लड़कियों में बहुत अंतर होता है. 2 बच्चे हों तो घर में भाईबहनों के साथ जिम्मेदारियां बंट जाती हैं लेकिन अकेली लड़की हो तो जिम्मेदारियों का पहाड़ आ जाता है. उसे कई लड़कियां हैंडल नहीं कर पाती हैं.

उन की पहरेदारी भी ज्यादा हो जाती है। अगर 4 बजे कालेज खत्म हुआ तो 5 बजे से मां के कौल आने शुरू हो जाते हैं कि अब तक घर क्यों नहीं आई? तू कितनी देर में आ रही है? वहीं लड़के 8 बजे तक भी बाहर रह सकते हैं लेकिन लड़कियां ज्यादा लंबे समय तक बाहर नहीं रह पातीं। मैट्रो में जाती हैं या खुद ड्राइव करती हैं तो मांबाप बारबार फोन करते हैं कि तुम अभी तक घर नहीं आईं जबकि लड़कों के साथ ऐसी दिक्कत नहीं आती.

मातापिता का पूरा फोकस उस एक लड़की पर ही हो जाता है. यहां भी लड़कियां परेशान हो जाती हैं.

दूसरा, अगर लड़की की शादी हो जाए तो अकेले बेटी का पति ध्यान रखेगा या नहीं कह नहीं सकते इसलिए लड़कियों की जिम्मेदारी 50-60 साल का होने तक बनी रहती है. अगर मांबाप की संपत्ति न हो या वे पैसे वाले न हों तो दामाद बिलकुल धयान नहीं रखता. बल्कि दामाद को लगता है कि बेकार की मुसीबत गले पङ गई. उसे लगता है कि हर समय ही तुम मायके में पड़ी रहती हो.

इकलौती बेटी के मांबाप को अकसर यह चिंता सताती है कि बेटी की शादी के बाद वे किसके सहारे रहेंगे. इसलिए अकेली लड़कियों पर क्याक्या जिम्मेदारियां आ जाती हैं और वे उनके साथ कैसे डील करें.

ग्रोसरी शौपिंग

ये लड़कियां घर का काम करने में इतनी सक्षम हो जाती हैं कि हर महीने किचन का सारा सामान लाने की जिम्मेदारी इन की हो जाती है क्योंकि मां को लगता है कि आजकल आने वाले नए नई कंपनी के सामानों को लड़की अच्छी तरह देख कर ले लेगी क्योंकि बच्चों को इस बारे में ज्यादा जानकारी होती है हमे इतनी समझ कहां.

बिल जमा करने की जिम्मेदारी

बेटियों को खुद भी लगता है कि पापा कहां इतनी लंबीलंबी लाइनों में लग कर बिल पे करेंगे. यह काम तो मैं कर ही सकती हूं. कई बार दोस्तों के जुगाड़ से बिल जल्दी जमा भी हो जाता है या फिर कोई दोस्त अपना बिल पे कर रहा हो तो साथ ही मेरा भी करा देगा. मैं तो कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लूंगी. ऐसे करते करते यह जिम्मेदारी भी बेटी ही संभालने लगती है.

रिश्तेदारों को जवाब देना

यह भी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मातापिता जब शादी के लिए कहते हैं तो बेटी मना कर देती है लेकिन फिर वही सवाल रिश्तेदार पूछपूछ कर घर वालों को तंग करते हैं तो जवाब देने के लिए बेटी को सामने आना ही पड़ता है. घर वाले तो साइड हो जाते हैं कि आप खुद ही बात कर लो. तुनक कर बेटियां कहती हैं कि यह हमारा पर्सनल मामला है हम देख लेंगे. बस, इसी बात का बतंगङ बन जाता है और बेटी पर बद्ततमीज होने का तमगा भी लग जाता है.

अब कोई भाई या बड़ी बहन होती तो वह मामला संभाल लेते लेकिन यहां तो खुद ही मैदान में उतरना पड़ता है.

घर की साफसफाई और किचन के कामकाज में हाथ बंटाना

बड़ी होती बेटी को मां का हाथ भी बंटाना पड़ता है और बंटाना भी चाहिए यह कोई बुरी बात नहीं है. मां अगर बीमार हो तो भी किचन लड़की ही संभालने लग जाती है. छुट्टी वाले दिन या फिर 1 टाइम के खाने की जिम्मेदारी तो उस की होती ही है. इस के आलावा घर में जाले झाड़ना, ऊपर से कुछ सामान उतारना, सिलेंडर लगाना ये सब काम भी बेटी के जिम्मे आते हैं.

इंटरनैट बैंकिंग या औनलाइन शौपिंग बेटी ही करेगी

पापा इतने टैक्नोलौजी फ्रैंडली नहीं हैं कि वह यह सब काम करें. दूसरे, अब वे सीखना भी नहीं चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि बेटी सब संभाल लेगी. इस तरह बैंक का पूरा हिसाबकिताब बेटी के हाथ में आ जाता है. किसी मेहमान के आने पर सेल आदि में डिस्काउंट में कुछ सामन लेना हो blinkit, jamato हो या अमेजौन से शौपिंग करना हो सब बेटी ही करेगी.

मातापिता की हैल्थ का खयाल रखना

मातापिता का हैल्थ चैकअप कब कराना है, कहां करना है, कौन सा पैकेज इस के लिए अच्छा रहेगा यह सब भी बेटी ही देखती है. उन की बीमारियों से संबंधित किस स्पैशलिस्ट डाक्टर को देखना है वह भी बेटी ही अपने फ्रैंड सर्कल में पूछ कर पता करती है.

शादी के बाद जिम्मेदारी की ओर बढ़ जाती है

शादी के बाद तो बेटी पर डबल जिम्मेदारी हो जाती है कि यह घर भी देखो और मायके का भी पूरा खयाल रखो. सिबलिंग होते तो जिम्मेदारी बंट जाती लेकिन अब तो सब खुद ही देखना है. उस पर अगर दामाद सपोर्टिव न हो तो उस से डील करना भी मुश्किल हो जाता है. उसे लगता है कि हर वक्त तुम्हारा दिमाग मायके में लगा रहता है. अब उसे कौन बताए कि जब वहां मेरे आलावा कोई और काम करने वाले नहीं हैं तो उसे कैसे मैनेज करना है, यह सोचना भी तो लड़की का ही काम है.

इन सब चीजों से कैसे डील करें

जरूरी नहीं है कि सब काम आप खुद ही करें. घर के काम अगर अब मां से नहीं होते तो एक अच्छी से मेड ढूंढ़ें और काम में मदद लें. हां, उस नजर रखना और ढंग से काम करना यह सब आप देख सकती हैं.

औनलाइन चीजों का यूज करें

आज के समय में बैंक का काम हो या बिल जमा करना हो या फिर ग्रोसरी शौपिंग करना हो सब काम फोन पर बैठेबैठे ही हो सकते हैं इसलिए औनलाइन सब करने की आदत डालें. इस से समय और मेहनत दोनों ही बचते हैं.

जीवनसाथी से पहले ही अपनी जिम्मेदारियों के बारे में डिस्कस कर लें

जिस से भी शादी करने जा रही हैं पहले उस से बात कर के तय कर लें कि अपने मायके की देखरेख करना आप की ही जिम्मेदारी है। अगर कोई प्रौब्लम है तो पहले ही बता दें। इस से सामने वाले बंदे का पहले ही माइंड मेकअप होगा कि यह तो सब करेगी ही. इस से रोजरोज की लङाईयां भी नहीं होंगी. उसे यह समझा दें कि मातापिता के बाद उन का घर आदि सब कुछ हमारा है तो जिम्मेदारी भी हमारी दोनों की ही होगी.

ड्राइवर रखें या कैब की सुविधा का लाभ लें

आप को गाड़ी चलानी आ गई है लाइसेंस भी मिल गया है, अच्छी बात है. लेकिन अगर आर्थिक स्तिथि अच्छी है तो सारा बोझ खुद पर क्यों लेना. घर के छोटे बड़े कामों के लिए ड्राइवर रख लें। जब जरूरत हो तब बुला लें जैसेकि मातापिता को कहीं जाना है और आप बिजी हों तो ड्राइवर के साथ भी भेज दें.

अपने कजिंस की मदद लेने में न हिचकिचाएं

अगर आप के कोई रिश्तेदार भाईबहन आप की कामों में मदद करना चाहें तो उन्हें मना न करें। अगर आप हर बार ऐसा करेंगी तो वे आप से पूछना ही बंद कर देंगे. आखिर सब रिश्तेदार एकदूसरे के काम आते ही हैं. आज वे आप की मदद कर रहें हैं तो कल उन्हें भी आप की मदद की जरूरत हो सकती है. इस बात को समझें. अपने रिलेशन लोगों से ऐसे बनाएं कि एक आवाज पर कई लोग आ कर खड़े हो जाएं.

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