36 साल की अनुषा देओल महिला कॉलेज में लेक्चरर है. उस ने मनोविज्ञान में पीएचडी कर के अपने लिए यह फील्ड चुना. उस का पति साधारण ग्रैजुएट है और प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता है. घर में पति के अलावा सासससुर और तलाक़शुदा जेठ है. अनुषा को घर में अक्सर कहा जाता है कि वह जॉब छोड़ दे मगर अनुषा इस के लिए तैयार नहीं होती. उसे लगता है कि जॉब के बहाने कुछ समय तो वह इस घर की चारदीवारी से दूर समय बिता सकेगी.
उस ने बहुत मुश्किल से घर में सब को राजी कर जॉब कंटीन्यू की है. कॉलेज जाने से पहले उसे घर का सारा काम करना पड़ता है. नाश्ते के साथ ही लंच की पूरी तैयारी कर दौड़तीभागती वह कॉलेज पहुँचती है. पूरे दिन काम कर शाम में थकीहारी लौटती है तो कोई उसे एक कप चाय भी बना कर नहीं देता. सास कोई न कोई शिकायत ले कर जरूर पहुँच जाती है. बेटी को पढ़ाना हो या कोई और काम सब उसे ही करना होता है. पति उस पर हर समय हुक्म चलाता रहता है.
जब भी वह किसी गलत बात का विरोध कर अपना पक्ष रखना चाहती है तो पति उसे डांटता हुआ कहता है," खुद को बहुत पढ़ालिखा समझ कर मुझ से जुबान लड़ाती है. जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगा. "
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पीछे से सास भी आग में घी डालने का काम करते हुए कहती है, "कितना कहा था पढ़ीलिखी लड़कियां किसी काम की नहीं होतीं. जुबान गज भर की और काम का सलीका जरा भी नहीं। उस पर तेवर ऐसे जैसे यही हमारा घर चला रही हो. याद रख तेरे कुछ हजार रुपयों से हमारा खजाना नहीं भर गया जो आँखें दिखाएगी. बहू है तो बहू की तरह रह वरना जा अपने बाप के घर. वहीँ जा कर नखरे दिखाना."