2010 में मास्टर शैफ सीजन 1 की विनर रहीं पंकज भदौरिया आज किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं. ‘शैफ पंकज का जायका,’ ‘किफायती किचन,’ ‘3 कोर्स विद पंकज,’ ‘रसोई से पंकज भदौरिया के साथ’ जैसे कई टीवी शोज ने उन्हें घरघर में पहचान दिलाई है. उन की 2 कुकबुक ‘बार्बी : आई एम शैफ’ और ‘चिकन फ्रौम माई किचन’ दुनिया भर में काफी मशहूर रही हैं. 2 बच्चों की मां पंकज स्कूल टीचर से कैसे बनीं मास्टर शैफ, किस तरह उन्होंने परिवार को संभालते हुए कैरियर में ऊंची उड़ान भरी, चलिए, जानते हैं:
कुकिंग में दिलचस्पी कब से हुई?
मेरे पेरैंट्स को कुकिंग का बहुत शौक था. वे बहुत अच्छे होम कुक थे. लोगों को पार्टी में बुलाना और उन्हें अपने हाथों से तरहतरह की रैसिपीज बना कर खिलाना उन्हें अच्छा लगता था. उस वक्त मुझे भी लगता था कि अच्छा खाना बनाने से न सिर्फ अच्छा खाना खाने को मिलता है, बल्कि कइयों की तारीफ भी मिलती है. इसलिए मेरी रुचि भी कुकिंग में बढ़ने लगी. मैं 11 साल की उम्र से खाना बनाने लगी. मुझे शुरुआत से कुकिंग में ऐक्सपैरिमैंट करने का बहुत शौक था. इंटरनैशनल फूड जैसे चाइनीज, इटैलियन, थाई बनाना मुझे ज्यादा अच्छा लगता था. शादी के बाद पति भी खाने के शौकीन निकले, इसलिए कुकिंग और ऐक्सपैरिमैंट का सिलसिला जारी रहा.
बहुत छोटी उम्र में पेरैंट्स को खो दिया. ऐसे में आप के लिए कैरियर की डगर कितनी मुश्किल रही?
जब मैं 13 साल की थी तब मेरे पिता की मौत हो गई. 21 साल की उम्र में मैं ने अपनी मां को भी खो दिया. मेरी मां अकसर कहती थीं कि शिक्षा एक ऐसा गहना है, जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता, इसलिए हमेशा पढ़ाई जारी रखना. चूंकि मेरी मां कम पढ़ीलिखी थीं, इसलिए पिता की मौत के बाद उन्हें अच्छी जौब नहीं मिल पाई, इसलिए भी वे मुझे हमेशा पढ़ने को कहती थीं. मैं ने अंगरेजी में एमए किया और फिर स्कूल में पढ़ाने लगी. फिर शादी हो गई. ससुराल वालों के साथ पार्टी में आने वाले भी मेरे खाने की बहुत तारीफ करने लगे, जिस से मुझे महसूस होता था कि शायद मैं कुछ खास बनाती हूं. उसी दौरान मैं ने टीवी पर मास्टर शैफ का विज्ञापन देखा. मैं ने टीचिंग छोड़ कर इस में भाग लिया और जीतने के बाद अपने पैशन को प्रोफैशन बना लिया.