किशोरावस्था यानी टीनऐज शारीरिक और मानसिक विकास की एक महत्त्वपूर्ण अवधि है. इस अवधी
में एक टीनऐज के तौर पर आप बहुत कुछ सीख रहे होते हैं. आप के अपने दोस्तों, पेरैंट्स और
सिबलिंग्स के साथ रिश्ते नई शक्ल ले रहे होते हैं. टीनऐजर्स के लिए यही वक्त होता है अपना भविष्य और कैरियर को एक रूप देने का.
ऐसी स्थिती में पेरैंट्स एक खास भूमिका अदा करते हैं जोकि उन के मानिसक विकास को प्रभावित
करती है. अकसर आप ने देखा होगा कि टीनेजर्स के पेरैंट्स अपने बच्चों को तरहतरह से परखते हैं और
उन की परख पर खरे न उतर पाने के कारण अकसर अपने बच्चों की आलोचना करने से भी कतराते भी नहीं.
आलोचना जरीया हो
पेरैंट्स के अनुसार आलोचना एक जरीया हो टीनऐजर्स को अपनी परफौर्मेंस में सुधार करने के लिए, प्रेरित करने के लिए.
एक ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा,”बचपन में जब पापा मेरे मार्क्स देख कर कहते कि ओह, गणित में तो बहुत कम अंक आए हैं, बेटा. मगर कोई बात नहीं अगली बार कोशिश करो अच्छा करने की. वहीं मेरी मां मुझे नीचे के कमरे से कुछ लाने के लिए कहतीं और फिर अचानक ही कहतीं कि रहने दो तेरे बस की नहीं है, तो पता नहीं क्यों मैं हतोत्साहित होने के बजाय वह काम करने के लिए ज्यादा उत्साहित हो जाती.”
लेकिन आज के समय टीनऐजर्स इस तरह के छोटे बडे क्रिटिसिज्म को नकारात्मक तरीके से ले लेते हैं और अपनेआप को कमजोर और डीमोटीवेट करने लगते हैं.
आइए, जानें कैसे अपनेआप को एक टीनऐजर्स के तौर पर आप क्रिटिसिज्म से बचा सकते हैं :
क्रिटिसिज्म को लें पौजिटिव
टीनऐजर्स में दोस्तों के साथ बने रहने का सामाजिक दबाव होता है, जिन में से कुछ दोस्त हमेशा आगे होते हैं. वे बेहतर दिखते हैं, ज्यादा समझदारी से काम लेते हैं, स्कूल में अधिक उपलब्धियां हासिल करते हैं और अधिक लोकप्रिय और कूल होते हैं.
सुबहसुबह स्कूल के दिनों के लिए तैयार होने की बात है आप वहीं अपनी आलोचना शुरू कर देते हैं.
‘मैं कैसा दिख रहा/रही हूं’,’मेरी दोस्त कितनी सुंदर दिखती है’,’ मेरा दोस्त अच्छा नंबर लाया है’,’वह स्पोर्ट्स में कितना अच्छा है…’ आदि आप खुद की आलोचना कर के अपना कौन्फिडेंस खो देते हैं.
ऐसा करने से बचें. हर व्यक्ति की अपनी एक सीमा और खासियत होती है. आप का सुंदर दिखना
उतना जरूरी नहीं है जितना कि आप का प्रभावी दिखना. खुद की तुलना किसी के साथ न करें चाहे वह आप का दोस्त या फिर भाई या बहन ही क्यों न हो. ऐसा करना खुद के साथ क्रूरता करने जैसा ही है. ऐसा कर के आप अपना आत्मविश्वास खो देंगे और अगर यह क्रिटिसिज्म आप के पेरैंट्स द्वारा किया गया है तो याद रखें कि आप के पेरैंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आप की लिमिट्स और प्रतीभा को बढ़ाने की कोशिश करते रहें.
इसलिए उन के द्वरा किये गए क्रिटिसिज्म को नकारात्म रूप से न लें. इस को ले पौजीटिव वे में रहें और अपनी परफौर्मेंस को सुधारने की कोशिश करते रहे.
क्रिटिसिज्म को न होने दें हावी
अमेरिका के मशहूर राइटर विलियम गिलमोर सिम्स कहते हैं, “आलोचना का भय प्रतिभा की मृत्यु है.”
इसलिए कभी भी क्रिटिसिज्म यानी आलोचना को अपने ऊपर हावी न होने दें. टीनऐजर्स क्योंकि
भावुकता से भरे होते हैं इसलिए अकसर टीनऐजर्स किसी भी तरह के छोटेबङे क्रिटिसिज्म को दिल से
लगा लेते हैं जिस से उन की परफौर्मेंस गिरती चली जाती है. ऐसा न करें.
हैल्दी क्रिटिसिज्म को अपनाएं और अनहैल्दी क्रिटिसिज्म को नजरअंदाज करते चलें, बिलकुल वैसे ही जैसे अकसर आप की परफौर्मेंस को नजरअदाज कर दिया जाता है.
पेरैंट्स के लिए
टीनऐजर्स के लिए क्रिटिसिज्म से ज्यादा जरूरी है प्रोत्साहन. क्रिटिसिज्म और प्रोत्साहन का बैलेंस टीनऐजर्स को मजबूत बनाता है लेकिन सिर्फ क्रिटिसिज्म उन्हें अकसर कमजोर करता है खासकर पेरैंट्स की तरफ से किया गया क्रिटिसिज्म.
यह टीनऐजर्स में सैल्फ डाउट्स और अंडर कौन्फिडैंस पैदा करता है जिसे समझने में अकसर टीनऐजर्स को एक लंबा वक्त लग जाता है.
इसलिए कभी भी गुस्से में आलोचना न करें. कभी भी सुधार या दंड देने के लिए आलोचना न करें.
केवल आलोचना का उपयोग न करें
और ‘क्या आप मूर्ख हैं’,’आप कभी नहीं सीखेंगे’,’आप कुछ भी ठीक से नहीं कर सकते…’ जैसे शब्दों से बचें.