मेरी सखी परी ने फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू किया तो मैं ने उस से मिलने का मन बनाया. उस के द्वारा खींचे गए फोटो फेसबुक पर देख कर मैं दंग रह जाती थी. किसी भी फोटो के बैकग्राउंड में वह ऐसे रंग भर देती थी जैसे किसी पेंटर ने अपनी पसंद के रंगों से उसे संवार दिया हो. फोटो में व्यक्ति के मन के भाव उस के चेहरे पर जीवंत और स्पष्ट दिखाई देते थे. उस के द्वारा खींचे गए दृश्य किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगते थे. उस की तसवीरों में विविधता देखते ही बनती थी.

स्कूल में भी वह अपनी रचनात्मकता के लिए जानी जाती थी. 12वीं कक्षा में कला की अध्यापिका ने छात्राओं को चित्र काट कर कोलाज की फाइल बनाने को कहा, तो उस में वह प्रथम आई थी और उस फाइल को स्कूल के द्वारा आयोजित प्रदर्शनी में भी दर्शकों के लिए दर्शनीय वस्तुओं का हिस्सा बनाया गया था. उस की वही कलात्मकता आज उस की फोटोग्राफी में झलकती है.

मिलने की ख्वाहिश

मैं ने सोचा, उस से मिल कर मैं भी क्यों न अपने परिवार के फोटो खिंचवा कर अपनी बचपन की सखी का लाभ उठाऊं. इसी बहाने उस के घर जाना भी हो जाएगा. दिल्ली पहुंच कर मैं ने परी से फोन कर के कहा कि मैं उस से मिलने आ रही हूं, तो वह खुशी से बोली, ‘‘वाह, मेरी सखी मुझ से मिलने आ रही है, आखिर मुझ से मिलने का टाइम मिल ही गया.’’

‘‘अब तुम इतनी मशहूर फोटोग्राफर बन गई हो तो. तुम्हारे पास टाइम कहां होगा. मुझ से मिलने आने के लिए? इसलिए मैं ने सोचा कि मैं ही तुम्हारे पास चली आती हूं. तेरी क्रिएटिविटी तो तेरे पास आ कर, तेरा स्टूडियो देख कर ही जान पाऊंगी न. तुझे पता है बचपन से ही मैं तेरी आर्ट की फैन हूं,’’ मैं ने कहा.

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