कोरोना की वैक्सीन लगभग तैयार है और अगर अंत में कोई बड़ी खराबी न निकले तो यह दुनियाभर में बंटने लगेगी. पर इस का मतलब यह नहीं है कि हम फिर प्रीकोरोना युग में लौटने के लिए सूटकेस बांध लें. कोरोना वैक्सीन को 7 अरब लोगों तक पहुंचने में समय लगेगा और फिर भी ऐसे पौकेट रहेंगे जहां इस का प्रकोप किसी तरह से आ ही जाएगा.

पोस्ट कोरोना युग का एक अलग मजा है. लोगों को एकांतवास तो सहना पड़ा है पर फुजूल की दिखावेबाजी जम कर कम हुई है. पार्टियां कम हुई हैं. भीड़ कम लगी है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर दबाव कम हुआ है. एअरपोर्ट, रेलवे स्टेशन सूने नजर आए हैं. लोगों ने फालतू में घूमनाफिरना बंद किया है. यह अच्छा ही है. हम सब ने छिप कर जरूरत से ज्यादा चलफिर कर प्रकृति के साधनों का जम कर दोहन किया है और दुनियाभर में पौल्यूशन महामारी बन गया है, जिस के शिकार लोगों की गिनती आसान नहीं रही.

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आमतौर पर देश यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उन के कारण प्रदूषण हो रहा है. अमेरिका तो इस बारे में सब से बड़ा खलनायक सिद्ध हुआ, जिस के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बजाय समस्या सुलझाने के चीन और भारत को ब्लेम करने में लगे थे.

हम अपने देश को ही ढंग से संभाल नहीं पा रहे थे. कोरोना की वजह से घरों में बंद रहे तो बाहर का कूड़ा कम हुआ. कम प्लास्टिक फेंका गया. कम उत्पादन हुआ तो आमदनी तो कम हुई पर नदियां साफ हुईं. लोगों ने घरों से निकलना कम किया तो शहरों की हवा कम विषैली हुई.

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