पंजाब नैशनल बैंक में 11,394 करोड़ रुपए के घोटाले के परदाफाश होने से स्तब्ध जनता उबर भी नहीं पाई थी कि 900 करोड़ रुपए के रोटोमैक और फिर ओरिएंटल बैंक औफ कौमर्स से 390 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी से वह और भी सन्नाटे में है. भ्रष्टाचार मुक्त देश, स्वच्छ भारत और ईमानदारी पर बड़ेबड़े दावे करने वाले नेता खामोश हैं. सरकार विपक्ष के निशाने पर है. इन घोटालों से सरकार चौतरफा घिर गई है. नोटबंदी, जीएसटी जैसे निर्णयों के साथ अर्थव्यवस्था में ईमानदारी व सुधारों के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं. कहां तो विदेशों में जमा कालेधन को वापस लाने के वादे किए जा रहे थे और आज देश का सफेदधन ले कर भागने वाले कतार में दिख रहे हैं. ऐसे में सरकार की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे है.

पीएनबी में घोटाले का यह मामला पिछले 7 वर्षों से चल रहा था लेकिन किसी को भी इस का पता नहीं चल पाया. देश के इस सब से बड़े बैंक घोटाले के बारे में बताया जा रहा है कि लेनदेन में हुए फर्जीवाड़े से कुछ खास लोगों को फायदा पहुंचाया गया है.

हीरों के व्यापार का किंग माना जाने वाला नीरव मोदी और उस के साथियों ने 2011 में बिना तराशे हीरे आयात करने के वास्ते लाइन औफ क्रैडिट के लिए पंजाब नैशनल बैंक की मुंबई स्थित ब्रेडी हाउस ब्रांच से संपर्क किया था. आमतौर पर बैंक विदेश से आयात को ले कर होने वाले भुगतान के लिए लैटर औफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी करता है. इस का अर्थ है कि बैंक नीरव मोदी के विदेश में मौजूद सप्लायर को 90 दिनों के लिए भुगतान करने पर राजी है और बाद में पैसा नीरव को चुकाना है. पर बैंक के कुछ कर्मचारियों ने नीरव मोदी की कंपनियों को फर्जी एलओयू जारी किए और ऐसा करते वक्त उन्होंने बैंक प्रबंधन को अंधेरे में रखा.

बैंक द्वारा दी गई ऐक्सचेंज फाइलिंग में कहा गया है कि नीरव मोदी की कंपनियों ने पूर्व डिप्टी जीएम गोकुलनाथ शेट्टी की मिलीभगत से फर्जी तरीके से 11,394 करोड़ रुपए का लैटर औफ अंडरटेकिंग ले लिया था. एलओयू एक तरह की गारंटी होती है जिस के आधार पर दूसरे बैंक कर्ज देते हैं.

घोटाले का परदाफाश

शेट्टी के रिटायर होने के बाद 16 जनवरी, 2018 को नीरव की एक कंपनी ने बे्रडी हाउस ब्रांच से गारंटी (एलओयू) देने का आग्रह किया. तब बैंक अधिकारियों ने एलओयू के बदले 100 प्रतिशत कैश जमा करने को कहा. इस पर कंपनियों ने कहा कि वे बिना कैश मार्जिन के वर्षों से एलओयू लेती रही हैं. जब इस की छानबीन शुरू हुई तो इस घोटाले का परदाफाश हो गया.

दिल्ली और मुंबई में बैंक अधिकारियों के साथ नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की कंपनियों के प्रतिनिधियों की कई बैठकें हुईं. उन में कंपनियों से पैसा वापस करने को कहा गया. 15 जनवरी को 280.70 करोड़ रुपए के एक एलओयू की अवधि पूरी हो गई तो आरबीआई और सीबीआई को इस की जानकारी दे दी गई. इस के बाद मेहुल चौकसी की 2 कंपनियों के 65.25 करोड़ रुपए के एलओयू की लायबिलिटी 7 फरवरी को पूरी हो गई. इस की जानकारी भी आरबीआई और सीबीआई को दे दी गई तो छानबीन के बाद 12 फरवरी को पता चला कि कुल 11,394 करोड़ रुपए के एलओयू फर्जी तरीके से जारी किए गए. गोकुलनाथ शेट्टी मार्च 2010 से मुंबई शाखा में पीएनबी के विदेशी विनिमय विभाग में कार्यरत था. कथित रूप से उस ने मनोज खारत नाम के एक क्लर्क के साथ मिल कर एलओयू जारी किए थे.

साजिश रचने वाले लोगों ने एक और कदम आगे बढ़ कर सोसाइटी फौर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशियल टैलिकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) का नाजायज फायदा उठाने का फैसला किया. यह इंटरबैंक मैसेजिंग सिस्टम है जिसे विदेशी बैंक पैसा जारी करने से पहले लोन का ब्योरा पता लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. बैंक के कर्मचारियों ने अपने बड़े अधिकारियों की जानकारी के बिना गारंटी को हरी झंडी देने के लिए स्विफ्ट तक अपनी पहुंच का फायदा उठाया. ऐसा करने पर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को कोई शक नहीं हुआ और उन्होेंने नीरव मोदी की कंपनियों को फौरैक्स क्रैडिट जारी कर दिया. यह रकम एक विदेशी बैंक के साथ पीएनबी के खाते में दी गई थी जिसे नोस्ट्रो अकाउंट कहते हैं.

पैसा इस अकाउंट से मोदी के विदेश में मौजूद बिना तराशे हीरे सप्लाई करने वाले लोगों को भेजा गया. जब ये फर्जी एलओयू परिपक्व होने लगे तो पीएनबी के भ्रष्ट कर्मचारियों ने 7 वर्षों तक दूसरे बैंकों की रकम का इस्तेमाल इस लोन को रिसाइकिल करने के लिए किया. सीबीआई ने 13 फरवरी को नीरव मोदी ग्रुप, गीतांजलि ग्रुप और चांदरी पेपर ऐंड अलायड प्रोडक्ट्स नाम की कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. सीबीआई ने नीरव मोदी, उन की पत्नी एमी, भाई निशाल और कारोबारी साझेदार मेहुल चौकसी के खिलाफ मामला दर्ज किया. 14 फरवरी को आंतरिक जांच पूरी होने के बाद पीएनबी ने बौंबे स्टौक ऐक्सचेंज को इस फर्जीवाड़े की जानकारी दी. मामला उजागर होने की भनक लगते ही नीरव मोदी जनवरी में भारत छोड़ कर न्यूयौर्क भाग गया.

15 फरवरी को प्रवर्तन निदेशालय ने मोदी के मुंबई, सूरत और दिल्ली के कई दफ्तरों में छापामारी की और प्रिवैंशन औफ मनी लौड्रिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज किया.

कौन है नीरव मोदी

नीरव मोदी के पिता हीरा कारोबारी थे जो भारत से बैल्जियम के एंटवर्प चले गए. नीरव मोदी का लालनपालन वहीं पर हुआ लेकिन वह व्यापार के लिए मुंबई आ गया. उस ने अपने चाचा मेहुल चौकसी से व्यापार करना सीखा. पीएनबी घोटाले में मेहुल चौकसी का नाम भी शामिल है. नीरव मोदी 2013 से फोर्ब्स की अमीरों की सूची में अपना नाम बरकरार रखे हुए है. उस के ब्रैंड को अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, बिपाशा बासु, एंड्रिया डायाकोनु और रोजी हंटिंगटन प्रोमोट करते हैं. हालांकि, प्रियंका चोपड़ा अब अलग हट गई हैं. 46 वर्षीय नीरव व्हार्टन ड्रौपआउट है. उस के ज्वैलरी शोरूम में एक ज्वैलरी के दाम 5 लाख से 50 करोड़ रुपए तक हैं. नीरव मोदी, उस की पत्नी एमी, भाई निशाल और मेहुल चौकसी डायमंड्स आरयूएस, सोलर ऐक्सपोर्ट्स तथा स्टैलर डायमंड्स में भागीदार हैं. इन कंपनियों की हौंगकौंग, दुबई और न्यूयौर्क में इकाइयां हैं.

1999 में नीरव ने फायरस्टार कंपनी बनाई. फोर्ब्स के मुताबिक, नीरव की नैटवर्थ 11 हजार करोड़ रुपए है. फोर्ब्स की सूची में नीरव 85वें स्थान पर है. उस के ज्वैलरी स्टोर लंदन, न्यूयौर्क, लास वेगास, हवाई, सिंगापुर, बीजिंग जैसे 16 शहरों में हैं. भारत में दिल्ली और मुंबई में उस के कई स्टोर्स हैं.

जब देश नीरव मोदी के घोटाले पर हैरान था तभी रोटोमैक और सेठ द्वारका दास इंटरनैशनल ज्वैलर का घोटाला भी सामने आ गया. पैनकिंग रोटोमैक कंपनी के प्रमुख विक्रम कोठारी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. कोठारी, उन की पत्नी साधना और पुत्र राहुल कोठारी पर बैंक औफ बड़ौदा समेत 7 बैंकों को 3,695 करोड़ रुपए की चपत लगाने का आरोप है. इसी तरह सीबीआई ने दिल्ली स्थित डायमंड आभूषण निर्यातक द्वारका दास सेठ इंटरनैशनल कंपनी के खिलाफ ओरिएंटल बैंक औफ कौमर्स के साथ 389.85 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया है. कंपनी के निदेशकों सभ्य सेठ, रीता सेठ, कृष्णकुमार सिंह और रवि सिंह पर आरोप हैं कि उन्होंने बैंक के साथ धोखाधड़ी की.

घोटालों का घटाटोप

देश में बैंक धोखाधड़ी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. भारतीय बैंकिंग की स्थिति पर इंडियन इंस्टिट्यूट औफ मैनेजमैंट, बेंगलुरु की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद मानते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में वर्ष 2012 से 2016 के बीच 22,743 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी हुई. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में पहले 9 महीने में आईसीआईसीआई बैंक में करीब 455, स्टेट बैंक औफ इंडिया में 429, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में 244 और एचडीएफसी बैंक में 237 मामले पकड़े गए.

नीरव मोदी से पहले भी कई बैंकिंग घोटाले सामने आ चुके हैं. 2014 में कोलकाता के उद्योगपति बिपिन बोहरा पर कथिततौर पर फर्जी दस्तावेज के सहारे सैंट्रल बैंक औफ इंडिया से 1,400 करोड़ रुपए का लोन लेने का आरोप लगा था. उसी साल सिंडिकेट बैंक के पूर्व चेयरमैन और प्रबंध निदेशक एस के जैन पर रिश्वत ले कर 8,000 करोड़ रुपए का ऋण मंजूर करने का मामला सामने आया था. 2014 में ही यूनियन बैंक ने विजय माल्या को विलफुल डिफौल्टर घोषित कर दिया था. इस के बाद एसबीआई और पीएनबी ने भी यही राह अपनाई. बाद में सीबीआई ने विजय माल्या के खिलाफ 9,000 करोड़ रुपए की कर्जवसूली के लिए चार्जशीट दाखिल की. 2016 में विजय माल्या देश छोड़़ कर भाग गया. तब से वह ब्रिटेन में रह रहा है. ललित मोदी 6,000 करोड़ रुपए के साथ भाग गया. भारत सरकार उस के प्रत्यर्पण के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही है. हर तरफ गजब की सांठगांठ चल रही है.

कुछ समय पहले 7,000 करोड़ रुपए के एक और घोटाले में विनसम डायमंड्स का नाम सामने आया था. जतिन मेहता की विनसम डायमंड्स कंपनी का मामला भी नीरव मोदी जैसा ही था. हर तरफ कोलकाता के कारोबारी नीलेश पारेख का मामला भी सुर्खियों में रहा. सीबीआई ने 2017 में नीलेश को मुंबई एअरपोर्ट से गिरफ्तार किया था. उस पर कम से कम 20 बैंकों से 2,223 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप थे. पारेख ने यह पैसा शेल कंपनियों के माध्यम से हौंगकौंग, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात ट्रांसफर कर दिया था.

बढ़ता डूबत ऋण

आंकड़े बताते हैं कि जितना देश में एनपीए यानी डूबत ऋण है दुनिया के 137 देशों की उतनी जीडीपी है. पिछले 5 सालों में बैंकों में 1 लाख से ज्यादा रकम के 5,064 घोटाले हुए. इन में बैंकों को 16,770 करोड़ रुपए की चपत लगी. कहने को पीएनबी घोटाला 11,300 करोड़ रुपए का बताया जाता है पर नीरव मोदी ने अन्य बैंकों से भी करीब 8 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया है. इस तरह यह घोटाला 15 से 20 हजार करोड़ रुपए का बैठता है.

30 सितंबर, 2013 तक डूबत खातों की कुल राशि 28,416 करोड़ रुपए थी और 30 सितंबर, 2017 तक यानी 4 वर्षों में यह बढ़ कर 1 लाख 11 हजार करोड़ रुपए हो गई, अर्थात नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान यह लूट तकरीबन चारगुना बढ़ गई.

मजे की बात यह है कि बैंकों को बचाने के लिए सरकार 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा देने की योजना बना रही है यानी साफ है कि सरकार फिर क्रोनी कैपिटलिस्टों के लिए राहत और लूट का इंतजाम कर रही है. सरकार से पूछा जाना चाहिए कि यह पैसा किस का है और इस से वह किसे बचाने की कोशिश कर रही है. जाहिर है आम आदमी, किसान को तो बिलकुल नहीं.

पगपग पर सांठगांठ है. सरकार अपराधियों को विदेश भगा देती है और फिर वर्षों तक जनता का मन बहलाने के लिए प्रत्यर्पण का ड्रामा करती है. 5 साल पहले ललित मोदी को भगाया, 2 साल विजय माल्या को हो रहे हैं, अब नीरव मोदी. यह पक्का है कि यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है. जो पूंजीपति प्रधानमंत्री के विदेश दौरों में बिजनैस डैलीगेट्स के तौर पर नजर आते हैं और फिर प्रधानमंत्री के साथ खिंची तसवीरों से रुतबा बना कर मोटा धन उगाते हैं, उन पर नजर रखी जानी चाहिए.

जानबूझ कर खेल

जो उद्योगपति रंगेहाथ पकड़े जाते हैं वे दरअसल ऐसे होते हैं कि जो सब नियमकायदों का उल्लंघन कर के करोड़ोंअरबों का कर्ज लेते हैं और उसे डूबत खाते में डलवा देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि दिवालिया घोषित होने के बाद उन का कुछ नहीं बिगड़ता. अगर डिफौल्टरों की सूची देखें तो बारबार वही लोग सामने आते हैं जो पहले डिफौल्टर घोषित हो चुके हैं. वे फिर से सरकारी बैंकों तक पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं. वे बढ़ाचढ़ा कर बिजनैस परियोजनाओं के प्रस्ताव पेश करते हैं और लोन लेने में सफल हो जाते हैं. बाद में कर्ज चुकाने में नाकाम रहते हैं. यह बैंक अधिकारियों, बिजनैसमेन व सरकारी तंत्र का मिलाजुला खेल है.

हिम्मत व चोरी कर सीना जोरी का आलम तो देखिए कि नीरव मोदी बैंक को खुलेआम पैसा नहीं चुकाने की चुनौती दे रहा है. बैंक प्रबंधन को लिखे पत्र में नीरव ने कहा है कि उस ने उस की साख खराब कर दी. मामले को तूल दे कर ऋण वापसी के सभी रास्ते बंद कर दिए. उस के ब्रैंड को बरबाद कर दिया गया. सरकारी बैंकों में नेताओं की चलती है. बड़े पूंजीपतियों और नेताओं की मिलीभगत होती है. सरकारी बैंकों के अफसरों की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वे मना कर सकें. 1969 में इंदिरा गांधी ने जब 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था तब कहने को उन का लक्ष्य बैंकों में जमा पूंजी से राष्ट्रीय विकास करना था पर असल में बैंकों पर खुद का नियंत्रण करना था ताकि पूंजीपतियों को मनमरजी से लोन बांटा जा सके और वक्त पड़ने पर उन्हीं से वसूली की जा सके. इस के बाद संपूर्र्ण बैंकिंग व्यवस्था पर डूबत खातों का घुन लग गया.

डिफौल्टर कंपनियों के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के लिए शुरुआत में जो मामले नैशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल को भेजे गए उन में इस्पात, बिजली और सीमेंट शामिल हैं. बड़ी मात्रा में कौर्पोरेट कंपनियों द्वारा बैंकों का पैसा दबाया गया. देशभर की दर्जनों कंपनियां दिवालिया प्रक्रिया में हैं. सरकार ऐसी कंपनियों की संपत्तियों को बेचने की तैयारी कर रही है. एस्सार अपने स्टील कारोबार का बड़ा हिस्सा बेचने को मजबूर है. वह अपने तेल व्यापार की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच रहा है. जिंदल स्टील को अपने रेल व्यापार का 49 प्रतिशत हिस्सा बेचना पड़ रहा है.

वह अपना 3,500 मेगावाट का पावर प्लांट भी बेचने को तैयार है. रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को अपने रैंटल और भूमि संपत्ति में से 40 फीसदी हिस्सा बेचना पड़ रहा है. उस के दिल्ली स्थित भव्य साकेत मौल तक को बेचने की नौबत आ गई है. जेवीके को बैंकों का पैसा लौटाने के लिए अपने बेंगलुरु और मुंबई एअरपोर्ट में 33 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचनी पड़ रही है और सड़क से जुड़ी अपनी पूरी संपत्ति को वह बेच रहा है. जीएफआर हाईवे प्रोजैक्ट, साउथ अफ्रीकन कोल माइंस, इस्तांबुल एअरपोर्ट और सिंगापुर पावर प्रोजैक्ट का 70 प्रतिशत, इंडोनेशिया के 2 कोयला खदानों को बेचना चाहता है. जेपी ग्रुप अल्ट्राटैक, यमुना ऐक्सप्रैस वे और जेएसडब्लू में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच रहा है.

टाटा द्वारा यूके में कोरस स्टील प्लांट, धमरा पोर्ट को बेचना पड़ रहा है. वह दक्षिण अफ्रीका में नियोटिल बेच रहा है और मुंबई में उसे अपनी जमीन तक बेचनी पड़ रही है. लैंको ग्रुप आंध्र प्रदेश और उडुपी में अपने बिजली प्लांट बेच रहा है. रेणुका सुगर, ब्राजील पावर, चीनी और बायोफ्यूल के कारोबार को निबटाने में जुटा है. वीडियोकौन 6 सर्किल में अपना टैलीकौम स्पैक्ट्रम बेचने को मजबूर है. मोजांबिक में वह तेल संपत्ति बेच रहा है. बिड़ला सीमेंट को अपना सीमेंट व्यापार और सड़क से जुड़ी तमाम परियोजनाएं बेचनी पड़ रही हैं.

सहारा समूह की 86 संपत्तियां बिक रही हैं. वह फार्मूला वन में अपना 42 प्रतिशत, मुंबई में सहारा होटल, लंदन के होटल, न्यूयौर्क प्लाजा होटल, द ड्रीम न्यूयौर्क होटल और 4 हवाई जहाज बेच रहा है. 9,000 करोड़ रुपए ले कर भागे लिकरकिंग विजय माल्या की सारी संपत्तियां भी बिक रही हैं.

रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर के हालात भी बुरे हैं. उसे मुंबई में बिजली कंपनी के उत्पादन और वितरण की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचनी पड़ रही है. सवाल है कि कंपनियां फेल क्यों हो रही हैं? हमारे यहां कच्चा माल है, श्रमशक्ति है, बाजार है, ग्राहक हैं, संसाधन हैं तो कोई व्यापार फेल क्यों होता है? जब सरकारी बैंक मेहरबान हैं, सरकार टैक्सों में छूट मिल रही है, आयातनिर्यात में भारी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं, तो फिर कंपनियां दिवालिएपन की कगार पर क्यों पहुंच रही हैं. विदेशी कंपनियां कैसे यहां आ कर मालामाल हो रही हैं? स्टील, माइंस, बिजली कंपनियां क्यों फेल हो गईं? इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए क्रोनी कैपिटलिज्म को समझना जरूरी है.

क्रोनी कैपिटलिज्म दरअसल, शासकों और अमीरों ने मिल कर एक भ्रष्ट व्यवस्था बना ली है. सांठगांठ वाली यह व्यवस्था क्रोनी कैपिटलिज्म कहलाती है. इस में कारोबार में कामयाबी व्यापारी और सरकार के आपसी संबंध से तय होने लगती है. इस के तहत सरकारी तंत्र उद्योगपतियों को लीगल परमिट के आवंटन में पक्ष ले कर उन्हें अनुदान दे कर, टैक्स संबंधित सहूलियतें दे कर तथा अन्य आर्थिक अनियमितताओं के जरिए फायदा पहुंचाता है.

पिछली मनमोहन सिंह सरकार ने कौर्पोरेट पर खूब पैसा लुटाया. अब उन का कारोबार चला नहीं तो वे कंपनियां दिवालिया घोषित हो रही हैं. कौर्पोरेट और नेता परस्पर मदद कर एकदूसरे की ताकत बढ़ाते रहे हैं. स्पैशल इकोनौमिक जोन यानी सेज, निजी अस्पतालों, स्कूलों को मुफ्त जमीन आवंटन, शहरों में औद्योगिक क्षेत्रों के कथित विकास, मशीनरी, कर्ज, सब्सिडी बिना मेहनत किए ज्यादा फायदे के सौदे साबित होते रहे हैं. इस तरह की सहूलियतों का भरपूर दोहन कर मोटा पैसा बनाने की ललक अधिक है.

पिछले कुछ समय से देश में अरबपतियों की बाढ़ और किसी भी तरीके से पूंजी बढ़ाने की प्रवृत्ति ने भारत को क्रोनी कैपिटलिस्ट देशों की सूची में 9वें स्थान पर ला खड़ा किया है. क्रोनी कैपिटलिज्म में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा नहीं होती. यह मुक्त उद्यमशीलता, अवसरों के विस्तार और आर्थिक वृद्धि के लिए नुकसानदेह है.

राजनीतिक पार्टियां क्रोनी कैपिटलिज्म के लिए एकदूसरे पर आरोप लगाती रही हैं. भाजपा और आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर क्रोनी कैपिटलिज्म का यह कहते हुए आरोप लगाती रही हैं कि 2जी घोटाला, कोयला घोटाला के जरिए यूपीए नेताओं के करीबी कारोबारियों को अनुचित फायदा पहुंचाया गया. उधर, भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप है कि वे अडाणी और अंबानी जैसे कुछ करीबी उद्योगपतियों को कौडि़यों के भाव जमीन तथा दूसरी सुविधाएं मुहैया कराते रहे हैं. दूसरी तरफ आम आदमी, किसान, छोटे व्यापारी हैं जो मामूली कर्ज के लिए बैंकों के चक्कर लगातेलगाते थक जाते हैं. पहले तो उन्हें आसानी से कर्ज नहीं मिलता. और अगर कर्ज मिल भी गया तो जरा सी चूक होने पर बैंक 1 लाख रुपए के लोन पर किसान की 25 लाख रुपए की जमीन नीलाम कर देता है.

आम आदमी पर बैंक सख्त आम आदमी अपनी जिंदगी की आवश्यक जरूरतों के लिए बैंकों से कर्ज लेता है और किस्त चुकाने में यदि उस से चूक हो जाती है तो बैंक उस की कुर्की कर उसे दिवालिया बना देता है, जबकि पूंजीपति सांठगांठ कर के बैंकों का पैसा लूट कर विदेश भाग जाते हैं.

जीवन के लिए अनिवार्य रोटी, कपड़ा और मकान से जुड़े कर्ज को चुकाने में आम आदमी से जरा सी चूक होने पर बैंकों की ज्यादतियां शुरू हो जाती हैं. बैंक आम कर्जदार की संपत्तियां नीलाम कर उसे न घर का छोड़ता है न घाट का. ये वे लोग होते हैं जिन की मंशा बैंक से कर्ज ले कर भागना नहीं होती. क्रोनी कैपिलिस्टों की तरह ये विलफुल डिफौल्टर नहीं होते, पर बैंक इन की संपत्तियां कुर्क कर देता है या फिर नीलाम कर के वसूली कर लेता है. बैंकों की इस नीलामी में कई लोग बेघर हो जाते हैं. उन की अपनी जोड़ी संपत्ति भी बिक जाती है. हाल ही में अखबारों और बैंकों की वैबसाइट्स पर कुछ लोगों के मकानों की नीलामी के नोटिस देखिए:

28 फरवरी, 2018 को इलाहाबाद बैंक ने हिंदुस्तान समाचारपत्र में कर्ज चूककर्ताओं की संपत्तियों की नीलामी का विज्ञापन दिया है. इस में चंद्रभूषण ठाकुर के गांव सैदुल्लाबाद, लोनी, गाजियाबाद के रिहायशी फ्लैट नं. एसएफ-3, द्वितीय तल की 20.76 लाख रुपए में नीलामी की सूचना दी गई है.

23 फरवरी के दैनिक जागरण में ओरिएंटल बैंक औफ कौमर्स ने गीता सिंह पत्नी अनिरुद्ध सिंह के रिहायशी मकान संख्या ई-26, जवाहर विहार कालोनी, सदर तहसील, रायबरेली पर 9,99,500 रुपए का कर्ज 60 दिनों में न चुकाने पर इस संपत्ति पर कब्जा कर नीलाम कर देने की सूचना दी है. ओरिएंटल बैंक औफ कौमर्स ने जानकीपुरम, लखनऊ के प्रवीन कुमार वर्मा के मकान नं. बी-1/281 को 2,18,19,000 रुपए न चुकाने पर 22 फरवरी के दैनिक जागरण में नोटिस प्रकाशित किया है. स्टेट बैंक औफ इंडिया ने मकान, जमीन नंबर 10, बिल्हा ब्लौक, राहंगी, जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की मेघा भट्ट को 8 लाख 25 हजार रुपए के लिए इस संपत्ति की नीलामी करने के लिए अपनी वैबसाइट पर नोटिस प्रसारित किया है.

स्टेट बैंक की अमेठी शाखा ने प्रदीप कुमार कौशल के रिहायशी मकान वार्ड नं. 6, रामलीला मैदान, मौजा भनौली, अमेठी के 8.50 लाख रुपए न चुकाने पर नीलामी का विज्ञापन निकाला है. यूनियन बैंक औफ इंडिया महल्ला किशनपुरा, जालंधर की मधुबाला के मकान नं. 352 के 36 लाख रुपए न चुकाने पर नीलामी की तैयारी कर रहा है.

कैलाश डूडेजा के फ्लैट नं. 201, सैक्टर-सी, लिंबोडी, खंडवा रोड, इंदौर को 18 लाख रुपए में बेचने के लिए सूचना जारी की है. बैंक औफ इंडिया ने चिंचवाड, पुणे के एम पी सिंह के फ्लैट नं. 202 की 59 लाख रुपए में नीलामी की सूचना प्रकाशित की है. देना बैंक ने जयपुर के लखीचंद जैन के घर को 47.75 लाख रुपए में नीलाम करने का नोटिस दिया है.

खोखले वादे

जो देश खोखले दावों के बल पर जीता है, मेहनत के बजाय मंत्रों से सुखी, अमीर बनने की उधेड़बुन में दिनरात लगा रहता है, वहां ऐसे हालात सामने आते हों तो आश्चर्य कैसा?

इस देश में ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा,’ ‘ईज औफ डूइंग बिजनैस में भारत की रैंकिंग सुधरने का ढिंढोरा,’ ‘कालाधन वापस लाएंगे,’ ‘हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख जमा होंगे,’ ‘भारत विश्वगुरु होगा,’ ‘नोटबंदी से कालाधन बाहर निकलेगा,’ ‘जीएसटी से कर चोरी, बेईमानी रुकेगी,’ ‘राष्ट्रवाद,’ ‘मंदिर वहीं बनाएंगे,’ ‘वंदेमातरम’ और ‘गौभक्ति’ जैसे थोथे नारे और वादे प्रचारित किए गए. इन का देश के विकास से कोई लेनादेना नहीं है. स्टार्टअप, स्टैंडअप, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना अब तक कोई रंग नहीं ला पाई हैं. फिर भी खोखले दावे किए जाते हैं.

ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल की ताजा रिपोर्ट कहती है कि भारत भ्रष्टाचार के मामले में 2 पायदान और आगे बढ़ गया है. वह 183 देशों में 81वें स्थान पर जा पहुंचा है. 2016 में भारत 79वें नंबर पर था यानी बीते साल के दौरान देश में भ्रष्टाचार और बढ़ा है. हमारे यहां जितने खोखले वादे, नारे हैं उतनी ही लूट ज्यादा है. व्यवस्था बेईमानों के नियंत्रण में है, वह बेईमानी को उकसाती है. तुम बेईमानी करो ताकि व्यवस्था में बैठे बेईमानों को भी फायदा मिले.

देश थोथे भाषणों, प्रवचनों से नहीं चलता. देश की जनता मेहनत करेगी तो वह अपने खूनपसीने की कमाई को लुटने नहीं देगी. सरकार मेहनत के बजाय निकम्मापन और बेईमानी के रास्ते दिखाती है. भूमि, भवन मुफ्त, ब्याजमुक्त कर्ज, टैक्सों में छूट, बाजार की उपलब्धता, आयातनिर्यात की सुविधाएं जैसे अनगिनत साधन बैठेबिठाए उपलब्ध कराए जाते हैं. कौर्पोरेटजगत इन सुविधाओं का जम कर शुभलाभ उठाता है. फिर भी कुछ समय बाद पता चलता है कि कंपनियां फायदे के बजाय घाटे में जा रही हैं.

घाटे के बाद भी सरकार की मेहरबानी में कोई कमी नहीं आती. सरकार उन्हें दिवालिया घोषित कर देती है. उन के कर्ज को डूबत ऋण खाते में डाल देती है. कर्जदार का कुछ नहीं बिगड़ता. उस के घर से कुछ नहीं जाता. उलटा, वह सरकारी पैसे से अपनी निजी संपत्ति जोड़ लेता है. मजे की बात है कि दिवालिया होने के बावजूद सरकार फिर से उन्हीं लोगों को दूसरी दिवालिया कंपनियां खरीदने के लिए कर्ज व सुविधाएं देने को तैयार दिखती है.

मेहनती कंपनियां खुद अपने साधनसुविधाएं जुटा लेती हैं. वे किसी की मुहताज नहीं होतीं, लेकिन जिन का इरादा ही बेईमानी के बल पर पैसा जोड़ना होता है वे इस तरह के फर्जीवाड़े करती रहती हैं. जिस देश में मेहनतकश ज्यादा होंगे वहां लूट नहीं होगी. मेहनत की कमाई को वे लूटने ही नहीं देंगे. जिन लोगों ने बिना मेहनत पैसा, सुविधाएं पाईं, उन्हें लूट का कोई दुख नहीं होगा. लेकिन मेहनत की कमाई को कोईर् लूटने नहीं देगा.

असल में हमेशा से यहां काम न करने वाले मिल कर, मेहनत करने वालों की कमाई को लूटने की तिकड़म करते आए हैं. राजामहाराजा अमीरों से कर्ज ले कर उन्हें हर साधनसुविधा प्रदान करते आए थे. आम आदमी, किसानों से टैक्स वसूली चलती आई है. देश के विकास के लिए सरकार और पूंजीपतियों की सांठगांठ वाली यह व्यवस्था खतरनाक है. इस से आम आदमी की कमाई लुट जाती है. लूटने वाले हमेशा की तरह दानदक्षिणा और घूस दे कर तीर्थयात्रा पर चले जाते हैं, पापों के प्रायश्चित्त करने का उन्हें उपाय जो बताया गया है.

जनधन पर बैंकों की लूट

4 वर्ष पहले 15 अगस्त, 2014 को दिल्ली के लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी उद्घोषणा से लोगों को एकबारगी चौंका दिया था. सब के चहरे पर मुसकान थी, नारा था ‘मेरा खाता भाग्य विधाता.’ लोगों में आशा की किरण हिलोरें लेने लगी थी, 15 नहीं, तो 5 लाख रुपए तो मिल ही जाएंगे. जितने मुंह उतनी बातें होती थीं. केंद्र सरकार ने 28 अगस्त, 2014 को आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री जनधन योजना के नाम से इस योजना का शुभारंभ कर दिया. देखते ही देखते 5 सप्ताह के अंदर ही 5 करोड़ से अधिक खाते खोले जा चुके थे. इस बीच, खाते खोलने में जो अड़चनें आईं उन को दूर करने के लिए नियमों में ढिलाई दी गई, दस्तावेजों से समझौता किया गया.

परिणामस्वरूप, अक्तूबर 2017 में वित्तीय सेवा विभाग के जारी आंकड़ों के अनुसार, 30.60 करोड़ लोगों ने इस योजना के तहत अपने खाते खुलवाए हैं और इन खातों में कुल 67,687.72 करोड़ रुपए जमा किए जा चुके हैं. वास्तव में गरीबों के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, इस में दोराय नहीं. उन के नाम एक खाता तो हो गया वरना वे महीनों बैंकों के चक्कर लगाते रहते थे खाता खुलवाने के लिए, फिर भी कागजी कार्यवाही पूरी नहीं कर पाते थे और फिर थकहार कर घर बैठ जाते थे.

अब सही बात यह है कि खाता खुल गया तो बैंकों ने उन की गाढ़ी कमाई पर कैंची चलाना चालू कर दिया है. मैसेज, आहरण, बचत खाते में निर्धारित जमा से कम की राशि आदि और न जाने कितने नियमों का हवाला बैंक वाले आएदिन इन खाताधारकों को देते रहते हैं और उन के खातों में जमा रुपयों पर कैंची चलाते रहते हैं.

बैंकों की मनमानी

आज गरीब व्यक्ति साहूकारों व सूदखोरों से कहीं ज्यादा, अपने बैंकों से पीडि़त है. ब्याज तो कम है लेकिन बैंकों का मासिक चार्ज बहुत ज्यादा है. अब मजदूरगरीब जाए तो कहां जाए. सूदखोरों से मुक्ति के लिए तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा लेता था किंतु बैंकों की मनमानी लूट ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा. सरकार का शासकीय आदेश जीरो बैलेंस, निशुल्क रुपे कार्ड के नारे आदि धरे के धरे रह गए, जैसे भजनों से मिलने वाला सुख, शांति व समृद्धि. जनधन खाते के कुछ खातेदार ऐसे हैं जो 1,000-500 तो दूर, 100-200 रुपए भी जमा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में बैंक नितनए नियमों का हवाला देते हुए सैकड़ों का चूना खाताधारकों को हर महीने लगाएं, यह उचित नहीं है. एक ओर जहां सरकार कैशलैस भुगतान की योजना चला रही है, वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्राइवेट और सरकारी बैंकों ने खाताधारकों के खाते से 1 अप्रैल, 2017 से भारीभरकम कटौती करने लगे हैं.

बचत खाते में महानगरों में रहने वालों को 3 हजार, शहरी व कसबाई इलाकों में रहने को 2 हजार और ग्रामीण इलाकों में 1 हजार रुपए खाते में औसतन रखना जरूरी होगा. ऐसा न करने पर बैंक 50 से 100 रुपए तक सर्विस चार्ज की वसूली ग्राहक के खाते से करता है. यदि एटीएम कार्ड आप के बताए पते से वापस चला जाता है तो इस के एवज में कूरियर चार्ज के रूप में 100 रुपए व सर्विस टैक्स वसूल किया जाता है. डैबिट कार्ड के सालाना चार्ज में भी बढ़ोतरी की गई है. क्लासिक डैबिट कार्ड पर 125 रुपए व सर्विस टैक्स खाते से कटते हैं. सिल्वर, ग्लोबल, युवा व गोल्ड डैबिट कार्ड पर 175 रुपए व सर्विस टैक्स खाते से कटते हैं. प्लैटिनम डैबिट कार्ड वालों के खाते से 250 रुपए व सर्विस टैक्स तो प्राइड व प्रीमियम बिजनैस डैबिट कार्ड वालों से 350 रुपए व सर्विस टैक्स वसूल किए जाते हैं.

अगर एटीएम कार्ड रिप्लेस करना है तो बैंक इस के एवज में खाते से 300 रुपए वसूल करता है. एटीएम पिन भूल जाते हैं और फिर डुप्लीकेट या रीजनरेट कराते हैं तो बैंक आप के खाते से 50 रुपए व सर्विस टैक्स वसूल करता है. इंटरनैशनल ट्रांजैक्शन खास कर बैलेंस इन्क्वायरी पर 25 रुपए व सर्विस टैक्स, कैश विथड्राअल ट्रांजैक्शन पर 100 रुपए मिनिमम कटौती किए जाने का नियम है. वह भी साढ़े 3 प्रतिशत सर्विस चार्ज के साथ. 5 बार ही टैक्सफ्री ट्रांजैक्शन की सुविधा मिलती है. 5 से ज्यादा ट्रांजैक्शन करने पर प्रति ट्रांजैक्शन ग्राहक को 10 से 15 रुपए देने होते हैं.

गाढ़ी कमाई से कटौती न्यूनतम जमाराशि के नाम पर खाताधारक के खाते में निर्धारित राशि का होना अनिवार्य है. जिन के खाते में इस से कम राशि है और वे अपने खाते में बेगारी के चलते रुपए जमा नहीं कर पा रहे हैं तो वे अपनी गाढ़ी कमाई, जो आड़े वक्त के लिए बचा कर रखी थी, उस से भी हाथ धोने को मजबूर हैं.

कमलेश कुमार, निवासी कसबा हरगांव, जिला सीतापुर, पेशे से राजगीर हैं. वे अपनी आपबीती सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं, कहते हैं कि उन के खाते में 1,173 रुपए थे जो अब कटपिट कर मात्र 630 रुपए रह गए हैं, जिस में उन का प्रधानमंत्री बीमा योजना का चार्ज 312 रुपए भी शामिल है. वे कहते हैं कि एक गरीब आदमी, जिस के सिर पर 5 जनों का बोझ हो और रोज की मजदूरी ही जीने का एकमात्र सहारा हो, वह बैंक में 2 हजार रुपए की न्यूनतम जमाराशि हमेशा कैसे रख सकता है. वे पारिवारिक खर्च के चलते बच्चे के स्कूल की मासिक फीस जमा नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में बैंक में पैसा कहां से जमा करें. रहीस के खाते में 600 रुपए की जमाराशि पर 150 रुपए की कटौती की गई है. उन से बैंक में 2,000 रुपए की जमा के बारे में पूछने पर वे बताते हैं कि यदि घर में 4 लोगों का खाता हो और सारे खातों में मिला कर 8,000 रुपए जमा कर दिए जाएं तो वह रुपया गरीब आदमी के किस काम का जिस का वह ऐनवक्त पर इस्तेमाल न कर सके.

राकेश कुमार लखीमपुरखीरी में अध्ययनरत एक छात्र हैं. उन की शहरी क्षेत्र के एक राष्ट्रीयकृत बैंक खाते में 2,120 रुपए की जमाराशि थी, लेकिन अब मात्र, 1,675 रुपए ही शेष हैं और वह भी बैंक की भेंट चढ़ता जा रहा है. वे दुखी हैं, बेरोजगारी में खाते को कैसे मेंटेन करें. विधवा गुड्डी देवी अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं कि वे अपने खाते में पैंशन के शेष 1,500 रुपए में से 1,000 रुपए लेने आई थीं दवा खरीदने के लिए, पर यहां पता चला कि खाते से 185 रुपए कट गए हैं. बैंककर्मी ने खाते में और रुपए डालने की बात कह कर उन्हें चलता कर दिया.

कांति सिंह लखनऊ में रह कर परीक्षा की तैयारी कर रही हैं, उन का स्टूडैंट खाता है. उन के खाते में 2,560 रुपए थे जो एकदिवसीय परीक्षाओं की फीस आदि के लिए रखे हुए थे. वे तब दंग रह गईं जब डैबिट कार्ड से फीस जमा कर रही थीं. पता चला खाते से 540 रुपए कम हो गए हैं. बैंक से पता करने पर मालूम हुआ कि खाते से 540 रुपए की राशि डैबिट कार्ड, एसएमएस चार्ज व मासिक खाता मेंटिनैंस आदि के काट लिए गए हैं.

किस काम का खाता

आमजन खाते को चालू रखने के लिए रुपए जमा कर तो दें किंतु बैंककर्मी निर्धारित से कम की राशि होने पर चलता कर देते हैं. ऐसे में लोग अपने खाते को संचालित करने के स्थान पर अपना बैंक खाता बंद करवाना ही उचित समझते हैं. यह नमूना तो मात्र मेरे अपने आसपास के लोगों का है, देश में न जाने ऐसे कितने लाखोंकरोड़ों लोग होंगे जो बैंकों की इस अप्रत्याशित लूट का शिकार होते रहते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री का नारा ‘अपना खाता भाग्य विधाता’ एक मजाक बन कर रह गया है. बेचारा जनधन का मारा खाताधारक अब अपने घर की दालरोटी चलाने की जुगत करे या अपने खाते को मेंटेन करे. परिवार चलाने के लिए महंगाई की मार वह अलग से झेल रहा है. कामधंधा के नाम पर केंद्र सरकार ने कोई नया काम अभी तक नहीं किया. 4 वर्षों से सरकार अपने प्रचार में ही लगी हुई है. अब बेचारा खाताधारक अपने खाते को मेंटेन करने के लिए चोरीडकैती करे या फिर जेब काटे, वरना बैंक से अपनी जेब कटवाए.

असुरक्षित खाताधारक गरीब मजदूर खाताधारक जहां बैंक में जमा कटौती से परेशान हैं वहीं बड़े खाताधारक असुरक्षा से परेशान हैं. देश के सभी सरकारी, अर्धसरकारी, शहरी, ग्रामीण बैंक खाते से आधार जोड़ने का अभियान चला रहे हैं. क्या यह पूरी तरह सुरक्षित है? इस का उत्तर न सरकार के पास है न बैंकों के पास, खुद आधार जारी करने वाली संस्था यूआईडीएआई ने भी इसे सुरक्षित नहीं माना है.

यूआईडीएआई ने बताया है कि अब तक 210 बार आधार से जुड़े लोगों की गोपनीय जानकारी जन्मतिथि, पता आदि को लीक किया जा चुका है. इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि ऐसा कबकब घटित हुआ है. साइबर हमले का भ्रम लोगों के बीच बना हुआ है. इस प्रकार की घटनाएं वहां तक घटित हो रही हैं जो राष्ट्र तकनीकी मामलों में भारत से कहीं ज्यादा विकसित हैं. आएदिन बैंक साइबर हमले के शिकार हो जाते हैं और अपने साथसाथ लोगों को आर्थिक पंगु बना देते हैं. ऐसे में हम खुद को साइबर हमलों से कितना सुरक्षित पाएंगे जबकि साइबर अपराधी को आधार कार्डों का एक मजबूत मंच मिल जाएगा. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, साइबर अपराध का मामला देश में सालदरसाल बढ़ता ही जा रहा है. 2014 में यह आंकड़ा 3,622 था, जो 2015 में बढ़ कर 11,592 और 2016 में 12,317 के स्तर को पार कर गया है.

आईटी विशेषज्ञ रामानुज पांडे कहते हैं कि साइबर अपराधों को रोकने के लिए बड़े स्तर पर कोई खास तकनीकी अभी तक ईजाद नहीं की गई है. इस के बचाव हेतु आमजन के मध्य में डिजिटल जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए. तभी हम सब को साइबर अपराधियों से सुरक्षित रख सकते हैं.

हैकरों का सब से पसंदीदा निशाना बैंक, इनवैस्टमैंट एजेंसियां और बीमा कंपनियां हैं. साइबर सिक्योरिटी फर्म सिमैनटेक के मुताबिक, 2015 में हैकरों ने 35 फीसदी हमले इन्हीं क्षेत्रों पर किए. हैकरों ने न्यूयौर्क फैडरल रिजर्व में सेंध लगा कर बंगलादेश के बैंकों से 8.1 करोड़ डौलर उड़ा दिए थे. 12 मई, 2017 को वैश्विक रैनसमवेयर हमला हुआ. हैकर्स ने अमेरिका की नैशनल सिक्योरिटी एजेंसी जैसी तकनीक का इस्तेमाल कर साइबर अटैक किया. रैनसम अंगरेजी शब्द है, जिस का अर्थ है, फिरौती. इस साइबर हमले के बाद संक्रमित कंप्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया. उन्हें फिर से खोलने के लिए बिटकौइन के रूप में 300 से 600 डौलर तक

की फिरौती की मांग की गई. ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, रूस, स्पेन, इटली, वियतनाम समेत लगभग 74 देशों में रैनसमवेयर साइबर हमले हुए थे. साइबर सुरक्षा शोधकर्ताओं के मुताबिक, बिटकौइन मांगने के 36 हजार मामलों का पता चला. परिणामतया, 2,30,000 से ज्यादा कंप्यूटर प्रभावित हो गए थे.

बंगलादेश में 2015 के साइबर हमले ने बैंक तो बैंक, लोगों को भी दिवालिया बना दिया था. फिर भी हम नहीं चेत रहे हैं और बिना किसी पुख्ता सुरक्षा के आधार कार्ड को बैंक से जोड़ रहे हैं. लोगों की खूनपसीने की कमाई को लूटने का एक खुला मंच तैयार कर रहे हैं.

भविष्य में अगर इस प्रकार की घटनाएं देश में कहीं घट जाती हैं तो उन का जिम्मेदार कौन होगा? यह देश के सामने बहुत बड़ा प्रश्न है. सरकार को इस तरफ गंभीरता से सोचना होगा. और जब पूरा विश्वास हो जाए कि अब हम सुरक्षित हैं तभी लोगों के बैंक खातों को आधार कार्ड से जोड़ने के कार्य को अमल में लाया जाना चाहिए.

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