लखनऊ की रहने वाली संयुक्ता भाटिया को भी राजनीति के जरीए समाजसेवा करनी थी. वे भारतीय जनता पार्टी महिला मोेरचा में थीं. 1989 में उन्हें लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से भाजपा ने विधायक का टिकट दिया. उस समय संयुक्ता भाटिया की 2 बेटियां मोना, शिवानी तथा बेटा प्रशांत छोटे थे. ऐसे में उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ने से मना कर दिया. कैंट विधानसभा में संयुक्ता भाटिया का अपना प्रभाव था. वे पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय थीं. ऐसे में जब संयुक्ता ने चुनाव लड़ने से मना किया तो पार्टी को उन के पति सतीश भाटिया को विधायक का टिकट देना पड़ा. सतीश भाटिया ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक बन गए. संयुक्ता भाटिया पार्टी के साथ काम करती रहीं.
2017 के नगर निगम चुनाव में जब लखनऊ सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो संयुक्ता ने मेयर का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. पेश हैं, उन के साथ हुई गुफ्तगू के अंश: मेयर बनने के बाद आप की दिनचर्या में क्या बदलाव आया?
मैं अपने छात्र जीवन से ही सफाई और चीजों को करीने से रखने की आदी रही हूं. जब मैं स्कूल से आती थी तो घर के बाहर घर वालों की चप्पलें बेतरतीब पड़ी देखती थी. मैं स्कूल बैग बाद में रखती थी पहले चप्पलें सही तरह से रखती थी. लाइन में रखी चप्पलें देख कर सब जान लेते थे कि मैं घर में आ चुकी हूं. इस के साथ मुझे साफसफाई का भी शौक था, जो अब भी जारी है. पहले मेरे दिन की शुरुआत घर की साफसफाई से शुरू होती थी और अब शहर की सफाई से. मैं अपना ज्यादा से ज्यादा समय लखनऊ के लोगों को देती हूं. पार्षद से पहले लोग मुझे फोन पर अपनी परेशानियां बताते हैं. प्रदेश की राजधानी होने के नाते लखनऊ का मेयर होने की चुनौतियां ज्यादा हैं?
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