महंगाई का भूत अब घरवालियों को डरा रहा है. पैट्रोल, डीजल और घरेलू गैस के दाम तो बढ़ ही गए हैं और भी दूसरी बहुत सी चीजों के दाम बढ़ रहे हैं और पहले दामों के आदी लोगों को इस नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. इस बार की महंगाई का जिम्मा असल में सीधासीधा नोटबंदी और जीएसटी पर जाएगा. तेल की विश्व बाजार में बढ़ती कीमतें भी इतनी जिम्मेदार नहीं हैं.

सरकार ने नोटबंदी से देश के व्यापारों को चरामरा दिया था. सारे तमाशे के बाद पता चला कि कमरों में भरा काला धन तो सफेद हो कर बैंकों में आ गया और जितने नोट चलन में थे उन के 99% बैंकों से होते हुए रिजर्व बैंक में पहुंच गए. इस दौरान 3 से 6 महीनों की नक्दी की किल्लत ने व्यापारों की कमर तोड़ दी.
दुर्घटना के बाद डाक्टरों का बिल तो आता ही है, ऊपर से पाखंडी पंडितों पर अंधविश्वास करने वाले फिर टोनेटोटकों पर ही खर्च करने लगते हैं. इसी तर्ज पर भगवा सरकार ने जीएसटी थोप दिया कि एक टैक्स सब की जिंदगी आसान बना डालेगा, पर हुआ उलटा ही. हरेक की जिंदगी कंप्यूटर कुंडलियों में फंस कर रह गई है और आम घरों तक इस आग की ताप पहुंच रही है.

आंकड़ेबाजी से चाहे जो लगे कि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है पर असल में लाखों व्यापार ठप्प हो गए हैं. उन के साथ सीधे जुड़े कर्मचारियों के घर अब पैरालाइसिस में हैं.

महंगाई का असर खर्च पर कम मन पर पहले पड़ता है. हरकोई एक दाम का आदी हो जाता है और उसी के अनुसार अपना बजट बनाता है. पर इस तरह की भयंकर ऐपिडैमिक संतुलन बिगाड़ देती है.

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