अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी की दोपहर से सत्ता में आ गए और वाशिंगटन की उस दिन की मटमैली धूप की तरह दुनिया के देशों के राष्ट्रप्रमुखों पर रोशनी कम हो गई. डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले भाषण में ऐसा कुछ नहीं कहा जिस से लगे कि चुनावी भाषणों में उन्होंने जो भी कहा था वह सिर्फ तालियां बजवाने या वोट बटोरने के लिए था. बिजनैसमैन डोनाल्ड ट्रंप का वादा है मुनाफे का, केवल अमेरिका के मुनाफे का और किसी भी तरह गोरे अमेरिकियों को सत्ता लौटाने का.

अमेरिका ने एक बदलाव की ओर कदम रखा है. दुनिया में अब कहीं भी मानवाधिकारों का हनन हो, एक मजबूत देश किसी कमजोर देश पर हमला करे, कहीं भुखमरी, प्राकृतिक हादसा हो, महामारी हो, सरकार द्वारा अपनी जनता को तंग करना हो, अमेरिका को तब तक मतलब नहीं होगा जब तक उस को कोई हानि न हो. अमेरिका अब दुनिया का पुलिसमैन नहीं है, अमेरिका अब स्वतंत्रताओं, उदारता, बराबरी, बर्बरता, कट्टरता की चिंता नहीं करेगा. अमेरिका को ट्रंप की सौगात है कि अमेरिकी फलेफूलें, वह भी गोरे अमेरिकी.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का चुना जाना भारत के लिए एक मिश्रित परिणाम है. ट्रंप जैसे विचार हमारे वर्तमान शासकों के भी हैं कि वहां के गोरों की तरह यहां ऊंचे, सवर्णों, अमीरों, सरकारी अफसरों का राज चले. अमेरिकियों की तरह भारत का एस्टेब्लिशमैंट भी इसलामी आतंकवाद को समाप्त करना चाहता है चाहे उसे करने में निर्दोष औरतें, बच्चे, आदमी मारे जाएं. पर, डर यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिकी कंपनियों को भारत से सस्ता सामान नहीं खरीदने देंगे. अमेरिकी कंपनियों को अमेरिकियों की जगह, सस्ते होने के कारण भारतीयों को नौकरी पर रखने की इजाजत न देंगे.

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