ननदभौजाई की खटपट घरों में होनी जरूरी नहीं. जो लड़की अपने भाई के लिए पत्नी देखने खुद गई हो, जिस ने उस के साजशृंगार का इंतजाम किया हो, शादी पर जम कर नाची हो, शादी के बाद घंटों गप्पें मारी हों, उसे कुछ दिन बाद देख कर रूखी नमस्ते कर मुंह फेर ले तो इसे अजूबा नहीं कहा जाता. यह तो साहिबाओ बड़ेबड़े लोगों में भी होता है. अब देखिए न अपनी ताजपोशी के दिन नरेंद्र मोदी ने बड़े आदरसत्कार के साथ नवाज शरीफ को दिल्ली बुलाया. घंटों बात की. उपहार लिएदिए. खाना साथ खाया पर अब न्यूयौर्क में दिखे, एक ही होटल में रहते हुए तो बस दूर से हाथ हिला दिया और मुसकान फेंक कर आगे बढ़ गए, क्योंकि भारतपाक संबंध एक बार फिर खटाई में पड़ गए हैं. भारत चाहता है कि दोनों देश कश्मीर का मामला छोड़ कर बाकियों पर फैसला कर लें पर पाकिस्तान कहता है कि 1947 का विभाजन सही नहीं था और कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए.

व्यवहार, राजनीतिक या कूटनीतिक स्थिति चाहे जो भी हो, इस विवाद में पिस आम लोग ही रहे हैं. लाखों परिवार 1947 में बंट गए थे. कुछ पाकिस्तान चले गए तो कुछ भारत में रह गए. वे कभीकभार मिलना चाहें भी तो नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की सरकारें मिलने देने के बीच दीवारें बन कर खड़ी हैं. राजनीति चाहे जो कहे, दोनों देशों की जबान, व्यवहार, खानपान, सोच एक ही है. जहां धर्म अलग हैं वहां भी अपनापन सा है, क्योंकि सदियों का साझा इतिहास है. नरेंद्र मोदी से उम्मीद थी कि वे पाकिस्तान के कठमुल्लों को समझाबुझा कर कम से कम आम आदमियों के बीच बनी खाई पर संकरा सा पुल तो बनवा ही लेंगे पर अब हालत यह है कि बात भी संभव नहीं है, घरों में देवरानीजेठानी, ननदभौजाई की तरह. यह तनाव आज निरर्थक है. कश्मीर का मसला जैसा है, वैसा पड़ा रहने दे कर भी काम आसानी से चल सकता है. आम आदमी लड़ें तो ठीक पर समझदार नेता जब लड़ते हैं तो रौंदे आम आदमी ही जाते हैं.

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