विधानसभा चुनावों में बिजली के दाम बड़ी चर्चा में रहे हैं. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 200 यूनिट तक मुक्त बिजली देने का प्रयोग इतना सफल हुआ है कि पंजाब को तो छोडि़ए जहां अरविंद केजरीवाल की पार्टी सत्ता की मजबूत दावेदार है, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी 10 मार्च के बाद फिर सत्ता में आने पर बिजली सस्ती करने को मजबूर हो गई है.

बिजली को सस्ता या मुफ्त करना घरों के लिए एक वरदान है क्योंकि बिजली अब धूप और हक की तरह की हवा है. अमीर तो इसे सह लेते हैं पर गरीब घरों के लिए भी बत्ती, पंखा, टीवी, वाटर पंप और फ्रिज आवश्यकता है. क्योंकि आज बाहर का वातावरण इतना खराब, जहरीला और शोर से भरा है कि सुकून तो बंद कमरों में ही मिलता है. समाज की प्रगति आज घरों को जेलोंं में बदल चुकी है. मकान 5--10 मंजिला हो गए हैं. पानी का प्रेशर इतना नहीं होता कि ऊंचे तक चढ़ सके. खुले में सोने के लायक छत है ही नहीं. इस पर भी बिजली मंहगी हो और हर समय बिल न दे पाने की तलवार सिर पर लटकती रहे तो यह बेहद तनाव की बात है.

जहां पैसे की किल्लत है, वहां एक बत्ती, एक पंखा और एक फ्रिज लायक बिजली मिलती रहे तो ङ्क्षजदगी चल सकती है. इस बिजली का बिल कितने का आता है, अगर उसे जमा करना हो तो उतना ही खर्च बिजली कंपनी का हो जाएगा.

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बड़े घरों में एसी, 20-25 लाइटें जले, यह उन की आय पर निर्भर है. वे इस सस्ती बिजली की कीमत नहीं दे रहे क्योंकि 50 से 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वाले यदि बिजली ले तो भी उन के घर के पास तार गुजरेगा ही, खंबे खड़े होंगे ही. ज्यादा खर्च तो बिजली के वितरण का है, बनाने का नहीं.

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