संविधान में संशोधन होना चाहिए कि कोई कुंआरा बड़े पद पर नहीं बैठेगा. कुंआरे रहे नरेंद्र मोदी के मंत्री वैंकैया नायडू ने 2014 में कहा था कि नरेंद्र मोदी न सोते हैं न सोने देते हैं. वे जम कर काम कराते हैं. और नरेंद्र मोदी ने तो पहले से कह रखा है कि वे न खाएंगे न खाने देंगे.

न सोओ न खाओ तो फिर बीवियों वालों का तो बुरा हाल हो जाएगा. पति मंत्री, प्रधानमंत्री, संतरी बना और काम पर लग गया, लेकिन 24 घंटे, बिना खाए, बिना पत्नीबच्चों को खिलाए बिताए, तो जो सपने बुने थे सब धराशायी हो जाएंगे.

हर पत्नी को खुशी होती है कि चलो पति कुछ बना है. अब अच्छे दिन आएंगे. पति के साथ खाएंगेपिएंगे और मौजमस्ती करेेंगे. पर यहां तो पद पर रह कर भी न फर्स्टक्लास का सुख है, न घर का, न बिस्तर का.

अगर यही हाल रहा तो पत्नी वाले मंत्रियों को पता चलेगा कि वे आधा टाइम अदालतों में खड़े हैं, क्योंकि उन की पत्नियों ने उन पर तलाक के मुकदमे ठोक रखे हैं. पत्नियां कहेंगी कि पति न तो मुनासिब गुजाराभत्ता देता है, न पास फटकता है. उस ने तो नरेंद्र मोदी की पार्टी के साथ दूसरी शादी कर ली है. और माई लार्ड, ऐसे में पति से तलाक ले कर पत्नी क्यों न दूसरा पति तलाशे जो कम कमाए, कम काम करे पर खाएखिलाए और साथ सोए?

डर तो यह है कि कहीं भाजपा में बगावत न हो जाए और सारे शादीशुदा नेता पार्टी छोड़छोड़ कर भाग न जाएं. नरेंद्र मोदी से जो डरते हैं वे पत्नियों से भी डरते होंगे और अगर पत्नी नाराज हो गई तो पति महाशय का वही हाल होगा, जो नरेंद्र मोदी का हुआ है कि वे विवाहित होते हुए भी अविवाहित की तरह जीवन गुजार रहे हैं.

अब किसी को नरेंद्र मोदी को समझाना चाहिए कि यदि इस बार भाजपा की जीत हुई है तो उस के पीछे वे करोड़ों अंधश्रद्धालु पत्नियां थीं जिन्होंने अपने पंडितजी के कहने के अनुसार पति को भारतीय जनता पार्टी की ओर ठेला था. अगर वे नाराज हो गईं तो अगले चुनावों में भाजपा का हाल राहुल गांधी और मायावती जैसी की पार्टियों का बनाया जा सकता है.

हमारा सुझाव तो यह है कि पत्नियों को ‘भारतीय पत्नी पार्टी’ बना डालनी चाहिए, जिस में खाने और सोने के मौलिक अधिकारों की बात हो. ये अधिकार मौलिक मानवी (मानव नहीं) अधिकार हैं और इन के बिना कोई स्त्री समाज उन्नति नहीं कर सकता. यह प्रकृति के विरुद्ध है.

यह जननी विरोधी है. यह जेंडर बेस्ड डिस्क्रिमिनेशन है. इस मामले को इंटरनैशनल कोर्ट औफ जस्टिस में ले जाया जा सकता है. हर औरत जशोदा बेन नहीं होती कि चुपचाप जा कर स्कूल में पढ़ा ले फिर रिटायर हो कर गांव में रहने लगे और पति फोटोग्राफरों के बीच घिरा रहे.

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