हाल ही में सोशल मीडिया सरकार के नारों के साथ खूब गुहार लगाता दिखा कि इस दीवाली चीनी वस्तुओं के उपभोग का बहिष्कार करें. कभी व्हाट्सऐप पर संदेश आए कि इस दीवाली खरीदें भारतीय वस्तुएं, भले ही वे महंगी हों.
राजनीति के खिलाडि़यों ने भारत की भोलीभाली जनता की संवेदनाओं को इस्तेमाल कर राजनीति खेलने का अच्छा तरीका अपनाया है.
दीवाली पूर्व ही क्यों जागा राष्ट्रवाद
यह सही है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करें, लेकिन दीवाली पर ही इन की देशभक्ति क्यों जागी? क्या पूरा साल हम चीनी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करते या चीन से हम सिर्फ रंग, दीए, झालरें और पटाखे ही आयात करते हैं? यह सारा कारोबार तो छोटे व्यवसायी करते हैं और गरीब तबके के लोग ही इन सस्ती वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं.
उच्चमध्य वर्ग तो वैसे ही बढि़या, ब्रैंडेड कंपनी की वस्तुओं का इस्तेमाल करता है. यह हमारे देश के गरीब वर्ग को और अधिक गरीब बनाने की साजिश तो नहीं ताकि देश की जनता त्राहित्राहि करती रहे और इन राजनेताओं की गुलामी को हमेशा की तरह मूक बन कर सहन करती रहे?
दोगली नीति चल रही है यहां
एक तरफ हमारी वर्तमान सरकार ‘मेक इन इंडिया’ का नारा लगाती है, तो दूसरी तरफ ‘रिलायंस जियो’ जो कि भारत का अकेला पैन इंडिया (बीडब्ल्यूए) लाइसैंस होल्डर है, ने चीन से 4 लाख 35 हजार नए 4जी सिम कार्ड आयात किए हैं क्योंकि यह देश में कमर्शियल रोलआउट सर्विसेज लौंच करने की तैयारी में लगा है.
इंपोर्ट ट्रैकिंग साइट जुआबा के अनुसार इन सिम कार्ड्स की लागत क्व 93,92,846 है और टैल्को ने इन्हें आयात किया है. क्या इन सिम कार्ड्स को भारतीय इस्तेमाल नहीं करेंगे? उच्चमध्य वर्ग के लोग ही खुल्लमखुल्ला इन सिम कार्ड्स को बड़ी शानोशौकत के साथ अपने फोन में फिक्स करेंगे. क्यों हमारी सरकार इन पर रोक नहीं लगाती? क्या छोटी और रोजमर्रा की वस्तुओं का बहिष्कार कर के ही हम चीन को पछाड़ लगाएंगे?
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