अब मायके जाना आसान नहीं रह जाएगा. प्रभु, ऊपर वाले नहीं, रेल मंत्री ने, 50% किराया बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है. एक तरह से रेल टिकट लेना एक लौटरी बन गई है. अब पहले 10% को ही सामान्य दर पर टिकट मिलेंगे, उस के बाद हर 10% को पहले से 10% ज्यादा देने पड़ेंगे और 50% तक अधिक देने पड़ सकते हैं.
यह रेलों के एकाधिकार का दुरुपयोग है. रेलें सस्ती हैं या नहीं यह अंदाजा लगाना आसान नहीं, क्योंकि इस पर सरकारी कब्जा है. कहां बरबादी हो रही है, यह कैसे पता चले? सरकार तो रेल मंत्रालय को पुलिस थानों की तरह से चलाती है, जहां हर मुलाजिम सेवा के लिए नहीं वसूलने के लिए खड़ा होता है. सेवा तो बहाना है. मकसद तो नौकरी सुरक्षित करना है.
रेल किराया बढ़ाना और वह भी इस तरह, बेहद नाइंसाफी है. रेल के एक डब्बे में बैठे 10% को 50% की छूट हो यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है. तत्काल सुविधा के अंतर्गत रेलवे पहले ही कुछ सीटें रिजर्व कर के अतिरिक्त वसूल रही थी. अब खाली ट्रेन में भी केवल 10% ही निर्धारित किराया दें यह मनमानी है और किसी भी तरह से इसे मान्य नहीं समझा जा सकता. रेलों के लिए आज भी सरकार मनमाने दामों पर जमीन वसूलती है. कर से प्राप्त पैसा निवेश करती है, यह नागरिकों की सेवा के लिए है और हर नागरिक को कमाने का बराबर का पैसा देने का हक तो बनता ही है. पहले 10% में आने के लिए तो टिकट बुकिंग कराना पीटी ऊषा की तरह दौड़ लगाना होगा, जिस में भी पदक न मिलने का डर रहे.
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