धर्म अपने आप में एक धंधा है और ऐसा धंधा है जिस में बचपन से ही ग्राहकों को जीवनभर के लिए लौयल्टी प्रोग्राम के लिए सदस्य बना लिया जाता है और बहुत सी सेवाएं उसी धर्म की लेनी पड़ती हैं. धंधे की तरह हर सेवा की कीमत देनी पड़ती है. कुछ भी मुफ्त नहीं है.
क्रैडिट कार्डों के लौयल्टी प्रोग्रामों की तरह धर्म की लौयल्टी में भी हजारों नियमउपनियम होते हैं. शुरू में हर धंधे की तरह हर धर्म बड़े सपने दिखाता है पर जब ग्राहक पक्का हो जाए तो आंखें तरेरने लगता है. जिन्होंने क्रैडिट कार्ड या बैंकों में खाते ले रखे हैं वे जानते हैं कि धर्म के रीतिरिवाजों की तरह बैंकों और क्रैडिट कार्ड कंपनियों के भी रीतिरिवाज हैं.
जैसे आजकल बड़ेबड़े मंदिरों में लंबी लाइनों में धक्केमुक्की के बाद पैसे दे कर सेवा मिलती है वैसे ही खातेदारों और क्रैडिट कार्ड होल्डरों को कठिनाई होने पर अपने ईश्वर को पाने के लिए घंटों, दिनों लगाने होते हैं. क्रैडिट कार्ड बेचने से पहले, खाता खुलवाने या एअरलाइंस के प्रोग्राम के सदस्य बनने या फिर होटल चेन की विशेष सुविधा पाने के लिए पहले बड़े सपने दिखाए जाते हैं पर एक बार फंसे नहीं और पैसा दिया नहीं कि आप गुलाम बन गए. धर्म की तरह आप को पुरोहितों के रूप में लौयल्टी मैनेजर या रिलेशनशिप मैनेजर मिलेंगे जो पैसे वसूलने के लिए होते हैं, भक्त को सेवा देने के लिए नहीं. हर धर्म अपने भक्तों से कहता है कि उन का उद्धार वही करेगा. वही पापों को समाप्त करेगा, पैसा ले कर. वह बीमारियां दूर कर देगा, अर्थ संकट समाप्त हो जाएगा.