दिसंबर के अंत में हरिद्वार में धर्म संसद में यदि नरसिहानंद को हिंदूमुसलिम संबंधों पर ही नहीं औरतों पर भी गहरा कटाक्ष असल में उन भक्त औरतों के कारण गया जो धर्म की दुकानदारी को चलाती है. हर धर्म में सब से बड़ी ग्राहक औरतें होती हैं और उन्हें  लगता है कि यदि उन्होंने धर्म की शरण ली तो उन का यह जन्म तो ठीक रहेगा ही मरने के बाद अगला जन्म मिलेगा या स्वर्ग में स्थान मिलेगा. औरतों को पैदा होते ही जो पट्टी पढ़ा दी जाती है कि उन को जो मिल रहा है वह पूजापाठ के कारण ही मिल सकता है और यही पति नरिसहानंद जैसों को बकबक करने का साहस देता है.

सवाल तो यह है कि यह धर्म संसद आयोजित कैसे होती हैं? कैसे देश के दूरदूर से लोग हवाई जहाज, रेल या गाडिय़ों से अकेले नहीं अपने शिष्य और शिष्याओं के साथ पहुंच जाते हैं.

धर्म संसद का आयोजन मुफ्त में नहीं हो जाता. इस के लिए स्थान, पंडाल, रहने की जगह, खाने की व्यवस्था सब करनी होती है खासतौर पर जब इस तरह ही संसद 3 दिन की होने वाली हो. जब तक पैसा नहीं होगा यह नहीं हो सकती. यह पैसा चंदे से आता है और चंदा एक तरह से या सीधे औरतों से ही मिलता है. यदि पुरुष देते हैं तो वे घर की आय काट कर देते हैं. औरतें देती है तो अपनी बचत में से भी घर की कुछ सुविधाएं काट कर देती है. किसलिए?

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उन्हें यही बताया जाता है कि धर्म के कारण ही वे समाज टिका है और वे सुरक्षित है. ये दोनों बातें  झूठी हैं, समाज समाज के नियमों से टिकता है, धर्म के नियमों से नहीं. किसी भी धार्मिक प्रवचन को सुन लीजिए, किसी धार्मिक पुस्तक को उठा कर पढ़ लीजिए, उस में व्रत, उपवास, पूजा, प्रार्थना, दानदक्षिणा की बातें होंगी, कहींकहीं उपदेश होंगे कि औरतों को मति अपना कर पति की सेवा करने चाहिए पर उस के साथ पुछल्ला लगा होगा कि चाहे पति कैसा भी हो.

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