2 राज्यों, नगर निगम, कुछ विधानसभाओं व एक लोकसभा का उपचुनाव हुआ. 1 जगह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा जीती, जम कर जीती, 2 जगह हारी. कुछ उपचुनाव पुरानी पाॢटयों से मिले कुछ पर नई पाॢटयां आईं. मुंह सब के लटके हुए थे पर सब चेहरे पर खुशियां दिखा रहे थे क्योंकि सत्ता की रेवडिय़ां बंटी पर किसी को सारी की सारी न मिली. इन सब में भारत की आम औरत, आम गृहिणी, आम आदमी, आम युवा, आम लडक़ी को क्या मिला, सिवाए बाएं हाथ की इंडैक्स ङ्क्षफगर पर काले निशान के.
ये चुनाव पहले के राजाओं के युद्धों की तरह थे जिस में एक जीतता राज करने लगता. या फिर कोई नहीं जीतता और राज पहले की तरह चलता रहता. कहीं भी चुनाव जनता के लिए, जनता द्वारा, उस के सुखों के लिए नहीं थे.
नरेंद्र मोदी ने गुजरात में 30 सभाएं की पर कहीं नहीं कहा कि वह पहले से ज्यादा और अवसर गृहिणियों, युवाओं, लड़कियों को दिलाएंगे. उन्होंने कहीं नहीं कहा कि टैक्स सही होंगे, लोगों के घरों में पैसे बरसेंगे, नौकरियां आएं ऐसी नीतियां बनेंगी. इसलिए नहीं कहा कि वे तो गुजरात में 27 सालों से हैं और जो करना था कर चुके होते.
क्या गुजराती ज्यादा खुश हैं. क्या गुजरात इन 27 सालों में स्वीटजरलैंड या ङ्क्षसगापुर की छोडि़ए, केरल जैसा भी बन पाया. न सवाल उन से पूछा गया, न उन्होंने अपनी ओर से वायदा करने की कोशिश की. अपस्टार्ट अरङ्क्षवद केजरीबाल ने बड़ेबड़े वादे किए क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें जीतता तो है नहीं. वे तो कांग्रेस का खेल बिगाडऩे आए थे.