30 साल से भी पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन के अस्पताल में भरती होने पर एक पत्रिका ने लिखा था, ‘‘पूरे अक्तूबर ही सैंट्रल मद्रास के अपोलो अस्पताल में रहस्य और अनिश्चितता की हवा बहती रही.’’ ये शब्द आसानी से जयललिता, राज्य की मुख्यमंत्री, के आखिरी दिनों को बयान करते हैं.
23 सितंबर, 2016 को जब जे जयललिता को बुखार व डिहाइड्रेशन के लिए भरती किया गया और 4 दिसंबर को उन्हें दिल का दौरा पड़ा, लोगों को कम ही जानकारी हो पाई. उन के निवासस्थान या उन की पार्टी के औफिस से कोई न्यूज बाहर नहीं आई. बस, अस्पताल के आम मैडिकल बुलेटिन आते रहे.
आखिरी बुलेटिन कुछ ऐसा था, ‘‘सम्माननीय मुख्यमंत्री का रेस्पिरेटरी सपोर्ट और पैसिव फिजियोथेरैपी का इलाज चल रहा है. धीरेधीरे उन के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है.’’ यह बुलेटिन इतना अस्पष्ट व अधूरा सा था कि कुछ लोगों ने कोर्ट में केस भी कर दिया कि सरकार मुख्यमंत्री की स्वास्थ्य की पूरी जानकारी दे.
लेखक वसंथी कहते हैं, ‘‘इस चुप्पी की आशा थी. 30 साल पहले एमजीआर के बहुत निकट होने के बाद भी जयललिता को उन की गंभीर बीमारी का पूरा अंदाजा नहीं था.’’
दरअसल, आज भारतीयों को अपने नेताओं की हैल्थ के राज को राज रहने की आदत डाल लेनी चाहिए, विशेषरूप से जब उन की हालत खराब हो रही हो. ऐसा आजादी से पहले से चल रहा है.
तत्कालीन मुसलिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना को भारत-पाक बंटवारे से एक साल पहले टीबी हुई थी. लैरी कौलिंस और डौमिनिक लपरी ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लिखते हैं, ‘‘अगर जिन्ना साधारण मरीज होते तो सारी उम्र सैनेटोरियम में रह जाते. वे आम मरीज नहीं थे, जिन्ना जानते थे कि अगर उन के हिंदू शत्रुओं को पता चल जाता कि वे मर सकते हैं, तो उन का राजनीतिक आउटलुक बदल जाता.’’
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