भारत आज विश्व में सब से अधिक युवा आबादी वाला देश है. भारत के मुकाबले चीन, अमेरिका बूढ़ों के देश हैं. चीन में केवल 20.69 करोड़ और अमेरिका में 6.5 करोड़ युवा हैं. हमारे यहां 125 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या में 65 प्रतिशत युवा हैं. इन की उम्र 19 से 35 वर्ष के बीच है. लेकिन देश के नेतृत्व की बागडोर 60 साल से ऊपर के नेताओं के हाथों में है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीनचौथाई नेता सीनियर सिटीजन की श्रेणी वाले हैं. राजनीतिक संगठनों में भी युवाओं से अधिक बूढे़ नेता पदों पर आसीन हैं.
मौजूदा संसद में 554 सांसदों में 42 साल से कम उम्र के केवल 79 सांसद हैं. इन की आवाज संसद में न के बराबर सुनाई पड़ती है. युवाओं की अगुआई कहीं नजर नहीं आती. उन की ओर से कहीं कोई सामाजिक, राजनीतिक बदलाव या किसी क्रांति की हुंकार भी सुनाई नहीं पड़ रही है.
देश के आम युवाओं की बात करें तो उन का हाल यह है कि वे भेड़ों की तरह हांके जा रहे हैं. चारों ओर युवाओं की केवल भीड़ है. हताश, निराश और उदास युवा. एसोचैम के अनुसार, आज 78 करोड़ युवा सोशल मीडिया पर तो सक्रिय हैं पर उन में राजनीतिक व सामाजिक रचनात्मकता नदारद है.
देश में नई चेतना का संचार करने वाली युवा राजनीतिक पीढ़ी कहीं नहीं दिखाई दे रही है. भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राजद, बसपा जैसे दलों में बड़ी उम्र के नेता अगुआ बने हुए हैं. कांग्रेस में 47 साल के राहुल गांधी हैं पर उन में नेतृत्व की क्षमता का साफ अभाव उजागर हो चुका है. केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा में कोई लोकप्रिय युवा नेता दिखाई नहीं देता.