बलात्कार की शिकार एक गरीब औरत को 20 सप्ताह की कानूनी इजाजत की हद के बाहर 24वें सप्ताह में गर्भपात कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. गनीमत है कि उस का मामला हजारों मामलों की तरह दबा नहीं रह गया और 2 दिन में ही फैसला हो गया, जिस से उसे अनचाहे गर्भ से छुटकारा मिल गया.

पर देश की हजारों औरतें हर साल इस तरह से पीडि़त होती हैं. बलात्कार या मरजी से हुए गर्भ को गिराने का फैसला अबोध किशोरियां व युवतियां हफ्तों तक नहीं ले पातीं. कुछ को तो मालूम ही नहीं होता कि सैक्स के कारण वे गर्भवती हो गई हैं. जब तक घर वालों को पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है और डाक्टर गर्भपात करने से मना कर देते हैं. ऐसे में मोटी फीस दे कर चुपचाप गर्भपात कराना होता है या फिर नौसिखियों के हवाले खुद को छोड़ देना होता है.

कुछ औरतें बारबार गर्भपात कराती हैं, क्योंकि या तो वे खुद उन्मुक्त सैक्स चाहती हैं या फिर बिंदास हो चुकी होती हैं और गर्भपात को मासिक क्रम सा समझने लगती हैं.

गनीमत है कि भारत उन देशों में से है, जहां गर्भपात का कानून काफी उदार है. अमेरिका आज भी आधुनिक होते हुए गर्भपात पर नाकभौं चढ़ाता रहता है और वहां का शक्तिशाली चर्च प्रोलाइफ यानी गर्भ के बच्चे के जीवन के हक की बात जोरशोर से सड़कों, विधान सभाओं और अदालतों में करता रहता है.

गर्भ में जो है उस की मालकिन औरत और सिर्फ औरत है. उस गर्भ पर न तो धर्म, न समाज न सरकार और न ही उस पुरुष की जिस की वजह से गर्भ हुआ, कोई हक है. यह फैसला उस औरत का अपना है चाहे जो भी जोखिम हो. गर्भ में पल रहे भू्रण का कानूनी दर्जा क्या है या लिंग क्या है, यह जानने का भी उसे ही हक है और जब तक वह खुली हवा में सांस नहीं ले लेता उस औरत की संपत्ति है, उस युवती का फैसला है.

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