हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने महिला के गर्भपात के लिए 20 हफ्तों की सीमा को हटा कर 24 हफ्तों की गर्भवती पीडि़त अविवाहित लड़की को स्वेच्छा से गर्भपात की इजाजत देने का महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है. इस लड़की से उस के प्रेमी ने शादी का प्रलोभन दे कर यौन संबंध स्थापित किए और बाद में इसे छोड़ कर दूसरी लड़की से शादी कर ली थी. गरीब घर की यह लड़की समाज, प्रतिष्ठा, तनाव के डर से जब गर्भपात के लिए अस्पताल गई, तब गर्भ 20 हफ्तों से भी अधिक होने पर डाक्टर ने गर्भपात के लिए मना कर दिया. तब लड़की ने प्रेमी की थाने में शिकायत दर्ज कराई. तब पीडि़ता की मैडिकल जांच हुई. सोनोग्राफी में भू्रण में दोष होने की रिपोर्ट आई. लेकिन वहां भी कानून का हवाला दे कर इस का गर्भपात नहीं कराया गया.
आखिर सामाजिक बदनामी के डर और तनाव में फंसी इस लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और कोर्ट ने इसे गर्भपात की इजाजत दे दी.
मानसिक वेदना
इसी तरह हाल ही में मुंबई की एक बलात्कार की शिकार अविवाहित लड़की के गर्भ में पल रहे भू्रण में दोष और उस से इस के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को ध्यान में रख कर कोर्ट ने 24 हफ्तों के बाद भी गर्भपात की इजाजत दे दी. लेकिन इस वास्तविकता से गुजरते वक्त इन लड़कियों को कितनी तकलीफों, परेशानियों से गुजरना पड़ा होगा, इस की सहज कल्पना की जा सकती है.
‘बाहर कितनी भी क्रांति हो, लेकिन घर में आज भी अंधेरा ही है’ समाजसुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले के कई दशक पहले व्यक्त किए ये विचार आज के समय में भी कितने सार्थक हैं.
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