दृश्य 1 : दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की बिल्ंिडग. कहने को तो इस बिल्ंिडग में दुनियाभर के स्वास्थ्य को दुरुस्त करने का काम जोरोंशोरों से निबटाया जाता है लेकिन बिल्ंिडग के ठीक पीछे बसी झुग्गीझोंपडि़यों में पसरी गंदगी और जमे कीचड़ को देख कर चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आती है.

झुग्गियों में बस रही आबादी या कहें जहरीली गंदगी के बीच सांस लेती सैकड़ों जिंदगियां मल, कीचड़ और दुर्गंधभरे नाले के किनारे बसी हैं, जिसे यमुना भी कह सकते हैं. पौलिथीन के टैंटनुमा बनीं इन झुग्गियों में न तो शौचालय की समुचित व्यवस्था है, न ही नहाने के ठिकाने हैं. हाल यह है कि जरा से परदे की ओट में खाना और पाखाना कार्यक्रम एकसाथ समाप्त किया जाता है. बदबू इतनी कि उस इलाके के पास से निकलने में ही बदन गंधा उठे. बारिश के दिनों का तो हाल ही मत पूछिए.

दृश्य 2 : उत्तर प्रदेश, हमीरपुर जिले का मौदहा कसबा. यहां के पूर्वी तारौस में साफसुथरा तालाब हुआ करता था. जहां आसपास के लोग नहाते और कभीकभार कपड़े भी धोते. कुछ ही दिनों में तालाब के आसपास आबादी बसने लगी और मकान बनने लगे. चूंकि मलनिकासी के लिए कोई सरकारी व्यवस्था मुहैया नहीं कराई गई और सीवर या ड्रेनेज सिस्टम न होने के चलते शौचालयों से निकलने वाला मल पाइपलाइन के जरिए तालाब में छोड़ दिया गया, इसलिए देखते ही देखते पूरा तालाब मानवमल और उस की दुर्गंध से भर गया. वहां नहाना तो दूर, पास से निकलना तक दूभर हो गया. लगातार बढ़ती दुर्गंध से बीमारियां फैलने लगीं. तालाब तो सूख गया लेकिन मल और कूड़ेकचरे के भंडार से पूरा इलाका हलकान है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...