जेल अपराधों का इलाज नहीं है, यह 3 मामलों ने और साफ किया है. दिल्ली में 25 साला एक विवाहित औरत की एक पड़ोसी ने दिनदहाड़े सड़क पर हत्या कर खुद भी आत्महत्या कर ली. पड़ोसी देखते रहे पर कोई कुछ बोला नहीं. यह औरत हत्यारे की शिकायत कर चुकी थी और उसे 2 माह पहले जेल भी भेजा गया था पर जमानत पर बाहर आया था. 6 साल से वह इस औरत को तंग कर रहा था.

उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक युवक को हिरासत में लिया गया है, क्योंकि उस ने 10 साल की लड़की का बलात्कार किया था. उस ने 2012 में 8 साल की लड़की का भी बलात्कार किया था और 4 साल  जेल में भी रह चुका था. एक अन्य मामले में 34 साल के एक आदमी ने 21 साल की लड़की की सड़क पर खुलेआम 24 बार कैंची घोंपघोंप कर हत्या कर दी और देखने वाले उसे न रोक पाए. लड़का लड़की का कई सालों से पीछा कर रहा था.

अपराध विशेषज्ञ हमेशा से इस बात पर बहस करते रहे हैं कि क्या जेल में सुधार होता है या सिर्फ अपराधी को समाज से दूर किया जाता है? अपराध विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि जेल में जीवन चाहे कितना ही कठिन हो पर यह अपराधों का स्कूल भी है, जहां अपराध कैसे किए जाएं सिखाया जाता है.

अपराधों पर नियंत्रण असल में जेलों से कम शिक्षा से ज्यादा आता है. जब पता चलने लगता है कि ईमानदारी से ज्यादा कमाई हो सकती है तो लोग अपराध कम करते हैं.  पर यह दावा भी अधूरा है, क्योंकि सभ्य देशों में अमेरिका में जनसंख्या के अनुपात में सब से ज्यादा अपराध होते हैं और वहां की जेलें कैदियों से ठसाठस भरी हैं. जेल चलाना वहां एक बड़ा व्यवसाय हो गया है और कई राज्यों ने यह काम ठेकों पर दे दिया है, जो जजों को प्रभावित कर के ग्राहक यानी कैदियों की संख्या बढ़वाने में लग गए हैं.

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