धर्म, राजनीति, भाषा, सत्ता की लड़ाई में जो सब से ज्यादा नुकसान उठाते हैं वे हैं निर्दोष बच्चे, उन की मांएं और बूढ़े मातापिता. लड़ाई में जो सैनिक बंदूक, तोप, टैंक या हवाई जहाज चलाते हैं उन्हें मालूम होता है वे क्या कर रहे हैं और सही या गलत वे पूरी तरह जोखिम ले रहे होते हैं. अफसोस यह है कि उन का निशाना बनते आम घर, आम सुखचैन से घर की चारदीवारी में रहते परिवार, हंसतेखेलते बच्चे. सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध के कारण लाखों सीरियाई अपना देश छोड़ कर दूसरे देशों में भाग रहे हैं. बहुत से तो ऐसे हैं जो एक देश की शरण से दूसरे देश की शरण में जा रहे हैं. जिस यूरोप और अमेरिका को नष्ट करने के लिए मुसलिम देशों में जेहादियों ने हथियार उठा रखे हैं, उन्हीं जेहादियों के देशों के लोग यूरोप और अमेरिका के दरवाजे खटखटा रहे हैं और इन में 50% बच्चे और औरतें हैं, जिन की चाह गोलियों की जगह सुकून हैं चाहे आधी रोटी मिले, तिरपाल की छत मिले.
यूरोप के देश इन शरणार्थियों को रोकने में लगे हैं पर उन्हें सफलता नहीं मिल रही क्योंकि भूखे, निहत्थे, बेचारे लाचार लोगों को गोलियों, तोपों की दीवारों से नहीं रोका जा सकता. ये शरणार्थी अपनी मरजी से अपना देश छोड़ कर नहीं आए, उन का घर, शहर ही नष्ट हो गया. केवल मुट्ठी भर पैसे और 2-4 कपड़ों को पीठ पर बांधे शरणार्थियों के जत्थे औरतों, बच्चों, बूढ़ों को लिए सैकड़ों मील पैदल चल रहे हैं या रबड़ की नौकाओं में भरभर कर समुद्र पार कर रहे हैं. ये शरणार्थी जो भोग रहे हैं वह दर्दनाक है और दिल दहलाने वाला भी. पश्चिमी देश चाहे जितना नानुकर कर लें, उन्हें दरवाजे तो खोलने ही पड़ेंगे.