सनातन धर्म के नाम पर जो अन्याय औरतों के साथ पौराणिक कथाओं में दिखता है उसे छोड़ भी दें तो भी आधुनिककाल में जब प्रिंटिंग प्रैस के कारण शिक्षा हरेक को सुलभ होने लगी और जहाजों पर चढ़ कर बराबरी, नैतिकता, तर्क और कानून की बातें पूरे विश्व में फैलने लगीं तो भारत में ऐसे लोगों की कमी न आई है जो सवर्ण औरतों को भी पिछली सदियों में घसीट ले जाना चाहते हैं, 100-125 साल पहले की.

अंगरेजों के आने के बाद भी महाराष्ट्र में पेशवाओं का राज काफी हद तक कायम था क्योंकि 1857 से पहले मराठा साम्राज्य छत्रपति शिवाजी या उन के वशंजों के हाथों में नहीं, उन के नियुक्त सलाहकार ब्राह्मणों जिन्हें पेशवा कहा जाता था, के हाथों में चला गया था. पेशवाओं के जमाने में गांवगांव तक सरकार का कंट्रोल था जिसे आज फिर लाने की कोशिश की जा रही है.

उस युग में जो महज 100-200 साल पहले की बात है, पिताजी और भाइयों को सरकार से सजा मिलती थी अगर वे नाबालिग लड़कियों का विवाह नहीं कर पाते थे. पेशवाओं के नियुक्त मामलतदार हर घर पर नजर रखते थे और हर

9 साल की आयु तक की नाबालिग लड़की का विवाह करा देना सनातनी कर्तव्य था. पेशवाओं ने अपने संगीसाथी सारस्वत ब्राह्मणों को राज्य से बाहर कर दिया था क्योंकि वे पेशवाओं के कुछ नियमों को मानने को तैयार नहीं थे.

पेशवाओं के आदेशानुसार ब्राह्मणों की विधवाओं की शादी वर्जित थी जबकि शूद्र अपनी विधवाओं को आसानी से ब्याह सकते थे. 1818 में पेशवाओं का राज फिरकी की लड़ाई के बाद समाप्त हो गया पर पेशवाओं के बनाए नियम घरघर मौजूद रहे और आज भी हैं.

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