धर्म 5,000 से ज्यादा सालों से ऐसे ही समाज में पैर नहीं पसारे हुए है. धर्म के नाम पर कमाने वाले जहां हमेशा से ही राज करते रहे हैं, वहीं धर्मगुरु मंदिरों के माध्यम से पैसा, पौवर पाते रहे हैं. प्रचारक कमीशन पाते रहे हैं और अंधभक्त को बेचने वाले लूटते रहे हैं. तर्क, विज्ञान, सोच की स्वतंत्रता के बावजूद अगर धर्म का सहारा ले कर एक पार्टी सत्ता पर जा पहुंची है तो इसलिए कि उस के लाखों एजेंट समर्थन जुटा रहे हैं. ये एजेंट हिंदू ही हों, जरूरी नहीं. जब हिंदू धर्म फलेगाफूलेगा तो दूसरे धर्म भी उस का अनुसरण करेंगे.
बैंगलुरु में इसलामिक बैंकिंग के नाम पर एक शातिर स्कल कैपधारी मोहम्मद मंसूर खां मुसलिम अंधभक्तों का इसलामिक बैंकिंग के नाम पर 1,500 करोड़ रुपए ले कर भाग गया है.
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मोहम्मद मंसूर ने उन मुसलिम भक्तों को फांसा था जो इसलामिक आदेश मानते हैं कि ब्याज लेना हराम है. उस ने उन से कहा कि उस की कंपनी आई मौनिटरी एडवाइजरी में पैसा जमा कराएगी तो सोने की खरीदफरोख्त से होने वाले लाभ में से उन्हें पार्टनर की हैसीयत से 7 से 15 फीसदी का मुनाफा हो सकता है. चूंकि आम बैंक ब्याज की बात करते हैं, इसलामिक कानून के अनुसार वहां पैसा जमा कराना गलत है. यह प्रचार धर्म के एजेंट ही करते हैं.
धर्मभक्त मुसलिमों को यह इसलामिक पूंजी निवेश लगा. 1,500 करोड़ से ज्यादा रुपया शिवाजी नगर जैसे छोटे इलाके में जमा हो गया. मोहम्मद मंसूर के मजे आ गए. उस ने जगुआर जैसी महंगी गाड़ी खरीद ली थी. जब भांडा फूटा, जो स्वाभाविक था, तो वह देश छोड़ कर भाग गया है.
धर्मभक्ति के नाम पर सदियों से लोगों को जान और माल दोनों देने को उकसाया जा रहा है. हर धर्म किसी न किसी बहाने औरतों को भी अपने दुकानदारों का फायदा पहुंचाने के लिए उकसाता रहता है. उन के अपनेअपने भगवान भक्तों का कल्याण कम करते हैं, भक्तों को बहकाने वालों का कल्याण ज्यादा करते हैं. देशभर में ऐसे ही मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारा, चर्च धड़ाधड़ थोड़ी बन रहे हैं. तकनीक के सहारे जो भी थोड़ीबहुत आर्थिक उन्नति देश में हो रही है उस में से अधिकांश हिस्सा इन धर्म के दुकानदारों के हवाले हो जाता है.अगर एक पार्टी ने इस का लाभ उठा कर सत्ता पा ली है तो बड़ी बात क्या है. यूरोप, अमेरिका, पश्चिमी एशिया इस तरह के शासकों के सदियों से गवाह रहे हैं. जनता हर जगह लूटी जाती रही है जैसे बैंगलुरु के शिवाजी नगर में लूटी गई है.
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