लोकसभा चुनावों के 4 जून, 2024 को जो नतीजे आए उन्होंने शायद बहुत कुछ बदलाव की नींव डाली है. इस से पहले 5 दशकों से हिंदूमुसलिम विवादों को उभारना और उन से मोटा पैसा और बड़ी पावर पाना ही देश का एकमात्र पर्पज रह गया था.
4 जून, 2024 को जो चोट हिंदूमुसलिम खाई खोद कर हिंदू को लूटने वालों को लगी है, उस से उबरने में समय लगेगा.
यह सोचना कि यह एक बदलाव का दिन साबित होगा, कुछ ज्यादा ही होगा. लोग भारतीय जनता पार्टी से नाराज अभी भी ज्यादा नहीं हैं.
फर्क इतना पड़ा है कि भाजपा को न चाहने वाले जो बिखरे रहते थे और भगवाधारी जो इन बिखरों को अकेला मान कर प्रवचनों, सड़क की गुंडई, संस्कारों और रीतिरिवाजों को थोप, हिंदू लड़कियों के हकों को मारते, पूजापाठ की दुकानों में धकेलने का काम जोरशोर से कर रहे थे, उसे ही देशभक्ति कह रहे थे, उसे ही विकास कह रहे थे, उसे ही सुशासन बता रहे थे, उसे ही नौकरी और रोजगार मान रहे थे, अब कुछ शांत बैठेंगे.
4 जून, 2024 के नतीजों के बाद 13 उपचुनाव हुए जिन में भारतीय जनता पार्टी, जिस हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू रीतिरिवाजों की मोनोपोली खुदबखुद अपने पर ले ली है, 11 में हार गई तो लगा कि इस सामाजिक खुली बेईमानी से कुछ राहत मिलेगी.
इस 30-40 साल के दौर में मुसलमानों और ईसाइयों को जो भुगतना पड़ा, वह तो जगजाहिर है पर जो हिंदू औरतों को भुगतना पड़ा, वह और ज्यादा गंभीर व गहरा है. हिंदू पोंगापंथी ने हिंदू औरतों पर बहुत गहरी चोट मारी है.
इन 30-40 सालों में हिंदू औरतों को लौजिकल और प्रैक्टिकल सोच से परे धकेल कर पूजापाठ में बिजी कर दिया गया. घरघर छोटे मंदिर गलियों, महल्लों, शहरों में बने बड़े मंदिरों के अलावा बाढ़ सी आ गई और ‘हिंदू धर्म को बचाना है, हिंदू खतरे में है…’ के नारों से बहका कर हिंदू औरतों ने और जोर से घंटियां और आरतियां करनी शुरू कर दी हैं.
सूरजपाल यानी भोले बाबा के सत्संग जैसे सत्संग सैकड़ों की तादाद में होने लगे हैं जिन में औरतों को धकेला जाता है. उन सब बाबाओं के प्रवचनों में एक तो चमत्कारों की बात होती है और दूसरी अपनी स्थिति को पिछले जन्मों का फल मान लेने की.
हिंदू औरतों ने मान लिया कि वे पढ़लिख कर काम कर के, कमरतोड़ मेहनत कर के भी खुश तभी रह सकती हैं जब पति को परमेश्वर मानें और प्रवचकों को इन पति परमेश्वरों का पितामह. उन के बहकावे में आ कर उन्होंने भेदभाव और जुल्म के खिलाफ मुंह खोलना बंद कर दिया. उन की मुट्ठी तनती है तो वे मुसलिमों, ईसाइयों या अगर वे ऊंची जातियों की हैं तो दलितों और पिछड़ों के खिलाफ बोलने या करने में तनती है.
हिंदू औरतों ने देश और परिवार के सुख के लिए फैक्टरियों, औफिसों, लैब्स, स्कूलकालेजों में नहीं तीर्थों में अपना समय और अपनी बचत का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. जब भी कहीं कोई दुर्घटना किसी तीर्थ समागम या तीर्थस्थल पर होती है तो मरने वालों में औरतों की गिनती ज्यादा होती है.
पुरुष समाज ने उस दौर को सुखदायक सम?ा क्योंकि इस से पहले औरतों के हकों की बातें बढ़चढ़ कर होने लगी थीं.
1947 के बाद भारी विरोध के बावजूद वह जवाहरलाल नेहरू, जिसे भगवाई जमात पानी पीपी कर आज भी कोसते हैं, ने औरतों को पुरुषों को धर्म के सहारे मिली औरतों पर गुलामी थोपने की ताकत को काटना शुरू कर दिया था.
1950 में तो नहीं पर 1955-56 में हिंदू कानूनों में बदलाव ला कर औरतों को अपार शक्ति दी गई जो कभी किसी सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक मंच से नहीं दी गई थी. औरतों को मरने पर पति की संपत्ति का हिस्सा मिला, पति पर एकाधिकार मिला, छोड़े जाने पर मुआवजे का हक मिला.
यह बात दूसरी है कि धर्म की जड़ें इतनी गहरी थीं कि इन कानूनों से जो हकों के पेड़ लगे वे इतने घने नहीं हो सके कि पुरुषों के लगाए कीकरों के कांटों से सुरक्षा दे सकें. इसी से बेचैन हो कर धर्म ने पलटवार करना शुरू कर दिया और कभी गौमाता के नाम पर, कभी पाकिस्तान का भय दिखा कर तो कभी इन कानूनों को लागू करने में ढीलढाल कर के औरतों को उस बराबरी का हक नहीं लेने दिया जिस को प्रकृति ने उन्हें दिया था. धर्म को राजनीति में घुसेड़ देने का सब से बड़ा नुकसान औरतों को हुआ क्योंकि घरघर में हिंदू अलख जगाने का काम पुरुषों के आदेशों पर औरतों के सिर पर मढ़ दिया गया.
साइंस और टैक्नोलौजी ने, इंडीपैंडैंट प्रैस ने, किताबों ने, खुलते कम्यूनिकेशन के नए तरीकों ने कुछ बदला पर उस पर धर्म और पुरुषों ने ज्यादा कब्जा कर लिया. पुरुषों को यह सम?ाने ही नहीं दिया गया कि उन के घर की सब से बड़ी सुरक्षा, उन की सब से बड़ी खुशी, उन के हंसतेखेलते जीवन की अकेली चाबी औरतों के हाथों में है. धर्म ने मानसिक क्रांतियों के बावजूद औरतों को व्यर्थ के पूजापाठ के कठघरों में बंद कर दिया.
धर्म ने यहां तक कर दिया कि औरतें क्या पहनें, क्या खाएं, कब खाएं यह वह तय करेगा. व्रतउपवास पहले भी होते थे पर अब उन्हें हिंदू जागरण के नाम पर घरों से निकाल कर सड़कों पर ले आया गया और यह पक्का किया गया कि कोई घर न बचे. हर महल्ले में धर्म कमेटियां किसी न किसी रूप में बन गईं. वास्तु, योग, आयुर्वेद के नाम पर औरतों को छला जाने लगा. पुरुष बागों में मौज करते, औरतों को चूल्हों में बंद रखा. पढ़ीलिखी, कमाऊ औरतों को भी धकेला. तीर्थ, मंदिरों तक पैदल जाने, चढ़ावा चढ़ाने को मजबूर किया गया.
क्या यह अब थमा है? पता नहीं. धर्म इस तरह के स्पीडब्रेकरों का मुकाबला हमेशा करता रहा है. धर्म की संयुक्त साजिशाना ताकत बहुत मजबूत है, मिलिटरी की तरह की.