धार्मिक पाखंड न सिर्फ इनसान की सोच को संकीर्ण बनाता है, बल्कि इस वजह से इनसान अति क्रूर बन कर अपना तनमनधन सब कुछ तबाह कर बैठता है.
2 जून, 2016 को हुआ मथुरा कांड इस का ताजा उदाहरण है. रामवृक्ष यादव ने अपनी संकीर्ण सोच के चलते न केवल 24 निर्दोषों की जान ले ली, बल्कि स्वयं भी अपने अंधभक्तों के साथ विस्फोट की भेंट चढ़ गया.
पागलपन के नशे में यह व्यक्ति देश के संविधान, कानून और सरकार तीनों से विद्रोह कर खुद को भगवान मानने लगा था. अपने उन्मादी भाषणों के द्वारा अंधविश्वासी भक्तों की सेना बचाने में जुटा रहा. मथुरा के जवाहर बाग में विस्फोटक सामग्री जमा करता रहा. घटना के दिन उन्मादी भक्तों ने इस व्यक्ति के साथ मिल कर भयानक विस्फोट कर दिया. अगर अंधविश्वास को रोका न जाए तो यह कितना विध्वंसक हो जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है.
कोई नहीं बचा इस से
क्या देश क्या विदेश, अंधविश्वास के विषवृक्ष ने हमेशा अतिवादी विचारों को ही फैलाया है.
अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में कुकलक्स कलान दिसंबर, 1865 में बहुत ही भयानक नाम बन कर उभरा. दिसंबर, 1860 में जब दक्षिण यूरोप में गणराज्य की स्थापना हुई तो काले लोगों को दास प्रथा से मुक्ति मिली. तब ऐलीट लोगों के समूह से कुकलक्स कलान नाम का भयानक जातिवादी संगठन उभरा जो काले लोगों की दास प्रथा का समर्थक था और गोरे लोगों की सुपरमैसी यानी सर्वोच्चता का. इस संगठन के लोगों ने स्कूलों, चर्चों पर हमले करने शुरू कर दिए. रात के अंधेरे में ये डरावनी पोशाकें पहन कर काले लोगों पर आतंक मचाने लगे. ये काले लोगों को धमकाने से ले कर उन का खून तक करने लगे. बाद में सरकारी दबाव की वजह से इन का प्रभाव कम हो गया, लेकिन अब ये फिर उभर रहे हैं. ये अफ्रीकनअमेरिकन हेट गु्रप के सिद्धांत पर चलते हैं.