आमतौर पर हिंदुओं को यह मनवा दिया गया है कि हवनों और मूर्तियोें के आगे दीए जलाने से हवा शुद्ध होती है, पौल्यूशन नहीं बढ़ता. वैज्ञानिक सोच वालों की भी बुद्धि पर तरस आता है जो इस तरह का लौजिक पेश करते हैं कि हवन में लकड़ी, घी, पत्ते, बीज जलाने से कार्बन डाइऔक्साइड नहीं निकलेगी.

‘डेली गार्जियन’ के 6 नवंबर, 2020 के एक अंक में एक भारतीय मूल के हिंदू जितेंद्र तुली की रिपोर्ट पढ़ कर कुछ संतोष हुआ कि उस ने खरीखरी सुनाई. उस की रिपोर्ट शुरू से ही तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो नरेंद्र मोदी के बहुत प्रिय रहे हैं, के शब्दों से होती है कि भारत की हवा तो फि.ल्दी है, गंदी बदबूदार है. ‘वह सही है’ जितेंद्र तुली कहते हैं.

जितेंद्र तुली कहते हैं कि 1950 में जब वे बड़े हो रहा थे, आसमान में तारे और आकाशगंगा, आसानी से देख सकते थे. आज भारत एक विषाक्त गैस चैंबर बन गया है जिस का एक कारण बढ़ती पौपुलेशन के द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा पैट्रोल, कोयला, गैस या मिथेन पैदा करना है.

जितेंद्र तुली लाशों को जलाने के लिए लकड़ी और हवनों, आरतियों, मूर्तियों के आगे 24 घंटे जल रहे दीयों को भी दोष देते हैं. इस के विपरीत सोशल मीडिया और गूगल में सैकड़ों पोस्ट हैं जो दावा करती हैं कि हवन से तो शुद्धि होती है. गूगल पर इतनी सारी सर्च हवन से हवा के शुद्ध करने वाली हैं कि असली रिसर्च कहीं इतने नीचे दब गई है कि ढूंढे़ नहीं मिलती.

ऐलर्जी स्पैशलिस्ट रितिका गोयल का मानना है कि  बच्चों को पौल्यूशन का शिकार ज्यादा होना पड़ रहा है क्योंकि घर के अंदर अगरबत्तियां, मौस्क्टो कौइल और हवन होते हैं और बाहर पैट्रोल, डीजल की गाडि़यां, पराली को जलाना, पत्ते जलाना इस कदर होता है कि कहीं भी पौल्यूशन से नहीं बचा जा सकता.

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