साल 2014. बच्चों की हत्याएं, वे भी इतनी बेरहमी से कि सदियों से शायद न हुई हों, खासतौर पर एक ही दिन में खुलेआम, सोचीसमझी साजिश के तहत. हिटलर ने बहुतों को अपने गैस चैंबरों में मरवाया था पर उस ने भी शायद यह वहशीपन नहीं दिखाया था, जो अपने ही धर्म के कट्टर सिरफिरों ने पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में दिखाया. जिस में 135 बच्चे तो मारे गए पर 1,100 में से बाकी बचे बच्चे, जिन्होंने इस कांड को आंखों से देखा होगा, वे सामान्य जीवन जी भी पाएंगे, कह नहीं सकते.
सिर्फ यह दिखाने के लिए धर्म के कट्टर लोगों की बात मानें वरना वे नरसंहार कहीं भी, कैसे भी कर डालेंगे, पाकिस्तानी तालिबानियों ने न केवल पाकिस्तान की जनता और शासकों को चेतावनी दे डाली, उस सेना को भी दे डाली जिस ने उन्हें अरसे से पाला था और प्रशिक्षण दिया था. इन धर्म के कट्टरों को उन मांओं, पिताओं, भाइयों, बहनों पर कोई दया नहीं आई, जिन्हें ये रोता छोड़ गए हैं. अनायास दुर्घटना या प्राकृतिक विपदा के दौरान बहुत से लोग एकसाथ मरते हैं पर इस तरह सोचसमझ कर आतंकवादियों का भारी हथियारों से लैस हो कर स्कूल में खुद पर बम लगाए आत्मघाती बन कर घुसना और फिर चुनचुन कर बच्चों और उन की टीचरों को मार डालना सिर्फ धर्म या सिरफिरा तानाशाह ही कर सकता है. धर्म का नाम ले कर जितना नरसंहार मानव समाज ने देखा है उस का अंश भर भी चोरों, लुटेरों, डाकुओं के हाथों न देखा होगा. यहां तक कि फिल्म ‘शोले’ के गब्बर सिंह जैसे वहशी हैं पर वे भी पूरे गांव के लोगों को नहीं मार डालते.
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