आरक्षण की आग में अब मोदी का गुजरात एक बार फिर सुलगने लगा है. हार्दिक पटेल उस जमात का नेता बन कर उभरा है जो खासी बड़ी है, पैसे वाली है पर जिस का सरकारी नौकरियों में दखल कम है और जिसे पैसे के बावजूद सामाजिक मान्यता में बराबर नहीं समझा गया है. जैसे धार्मिक नियमों के सहारे औरतों का आत्मविश्वास छीना जाता है, वैसे ही धर्मजनित जाति और वर्ण के नियमों से, शरीर से मजबूत, मेहनतकश और संख्या में कहीं ज्यादा गैर सवर्णों को शिक्षा और बराबरी की तमाम बातों के बावजूद आज भी सामाजिक सीढ़ी पर कहीं नीचे खड़े होने पर मजबूर किया जाता है.
इन पिछड़ी व निचली जातियों को थोड़ाबहुत लाभ आरक्षण से हो रहा है पर इस तरह का आरक्षण उन्हीं जातियों की औरतों को नहीं मिल रहा जो शिक्षा में और ज्यादा पीछे हैं और जिन पर ऊंची जातियों का ही नहीं, अपनी जातियों का भी जुल्म होता है. असल आरक्षण इन औरतों को मिलना चाहिए. पटेलों, यादवों, मराठों, जाटों के लिए जो आरक्षण मांगा जा रहा है वह केवल इन जातियों की औरतों के लिए होना चाहिए ताकि वे घर व बाहर नए वातावरण का निर्माण कर सकें. इस प्रकार का आरक्षण दूसरी जातियों को खलेगा भी नहीं, क्योंकि वे पहले दबंग जातियों के जुल्मों का शिकार रहे हैं पर उन के मर्दों के जुल्मों के, औरतों के नहीं. वे औरतों के लिए आसानी से जगह बनाने में तैयार हो जाएंगे. ऊंची जातियों की औरतों को फिर भी जगह मिल रही है और जनरल कोटे में वे खासी जगह बना रही हैं. वे वैसे भी पढ़लिख कर आजाद हो गई हैं. हार्दिक पटेल अगर औरतों के लिए अतिरिक्त आरक्षण मांगें तो आसानी से मिल भी जाएगा और उस जाति की औरतें पढ़लिख कर ऐसे बच्चों को बढ़ा सकेंगी जिन्हें आरक्षण का लालच ही नहीं रहेगा.