तेरी मां की...कार पीछे कर,’’ गली के एक कोने से आवाज आई, तो दूसरी तरफ से सुनाई पड़ा, ‘‘तेरी बहन की... तू पीछे कर अपनी कार.’’ हुआ यह था कि एक कार की पार्किंग के लिए अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले 2 व्यक्ति एकदूसरे को जी भर कर मांबहन की गालियां दे रहे थे. क्या अपने को मर्द कहने वाले ये लोग अपने दम पर एक कार तक पार्क नहीं कर सकते थे?

आजकल हम अकसर घरों, बाजारों और औफिसों में इस तरह की भाषा का प्रयोग होते देखते हैं. मजे की बात तो यह है कि इस तरह की भाषा का प्रयोग लड़कों के साथसाथ लड़कियां भी करती मिल जाती हैं. यह एक ऐसी मानसिकता है, जो दर्शाती है कि आज के इस आधुनिक युग में लड़कियां अपने को लड़कों के बराबर दर्शाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं. उस के लिए चाहे अभद्र भाषा का प्रयोग ही क्यों न करना पड़े. पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में आई वृद्धि को देख कर लगता ही नहीं कि समाज सभ्य हो रहा है. जहां एक ओर समाज का एक वर्ग अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बना रहा है, उसी समाज का एक बड़ा वर्ग बेटियों को बोझ समझता है और उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार देता है.

महिला सुरक्षा के नाम पर कई कानून बनाए गए. कई न्यूज चैनलों पर कईकई दिनों तक बहस भी दिखाई गई पर क्या महिलाओं पर जुर्म रुक गए? कुछ माननीय नेता नसीहत देते हैं कि लड़कियों को रात में घर से नहीं निकलना चाहिए और उन्हें छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए. रेप रोकना है तो लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दो. कोई जरा इन से पूछे कि उस 2 साल की बच्ची ने कैसे छोटे कपड़े पहने थे, जिस का बलात्कार हुआ. और पंजाब की उस 15 साल की लड़की का क्या दोष था, जिस का यौन शोषण दिनदहाड़े कानून के रक्षक ही 3 महीने से कर रहे थे. बात छोटे कपड़ों या रात के अंधेरे की नहीं है, बात है तो सिर्फ मानसिकता की.

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