‘हम दो हमारे दो’ का नारा देश में खूब चला पर सिवा आपातकाल के दिनों के इसे जबरन नहीं लादा गया. चीन में एक बच्चा नीति को सख्ती से लागू किया गया और 6-7 यहां तक कि 8 माह तक की गर्भवती बिना परमिट के दूसरे बच्चे से गर्भ वाली महिलाओं का जबरन गर्भपात कराना आम हो गया. कम्यूनिस्ट पार्टी के गुरगे गांवगांव, घरघर उसी तरह औरतों के पेट देखते थे जैसा अब हिंदू सेना के लोग गौमांस के लिए घरघर फ्रिज देखने लगे हैं.जबरदस्ती किसी भी तरह की अच्छी नहीं होती.

इंदिरा गांधी ने 1977 में देख लिया था पर चीन के सत्ता के नशे में मदहोश कम्यूनिस्ट शासकों को यह अब समझ में आया है कि 1 बच्चा नीति किस तरह चीन की अर्थव्यवस्था को हानि पहुंचा रही है. चीन की आबादी में अब सफेद बाल वालों की तो गिनती बढ़ ही गई है, जो काम नहीं कर सकते पर उन्हें जिंदा रखने के लिए सरकार को खर्च करना पड़ेगा. करोड़ों अविवाहित आदमी पत्नियों की खोज में उत्पादन से ज्यादा लग गए हैं.

भारत की तरह वहां भी पुत्र की कामना ज्यादा होती थी और नतीजा यह है कि आबादी में 100 लड़कियों पर 117 लड़के हैं. 3 करोड़ युवक अविवाहित हैं. उन के लिए लड़कियां हैं ही नहीं.यही नहीं पतिपत्नी के जोड़े की जगह औसतन चीन में 1.6 बच्चे हैं, क्योंकि बहुत से जोड़ों के कोई बच्चा नहीं होता और 1 से ज्यादा कोई पैदा नहीं कर सकता.140 करोड़ की आबादी वाला देश कम होती आबादी से डर रहा है.बच्चे कितने हों, किस लिंग के हों यह फैसला असल में मां का होना चाहिए.

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