उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ‘लडक़ी हूं लडक़ी शक्ति हूं’ और 40 प्रतिशत सीटों पर औरतों को खड़ा करने का कांग्रेस का महिलाओं को पौवर देने का एक्सपैरियमैंट बुरी तरफ फेल हुआ. कांग्रेस को 2.3' वोट मिले जबकि वोटरों में औरतों ने आदमियों से ज्यादा वोट दिए. नतीजा बताता है कि सिर्फ मरों से काम नहीं चलता. जमीन पर कुछ करने से काम चलता है और न कांग्रेस के शीर्ष नेता प्रियंका गांधी और राहुल गांधी और न ही उन के ठाठबाठी दूसरे नेताओं के बस के जमीनी थपेड़े की आदत हैं.
औरतों को सरकार से चाहत भी शिकायत नहीं है, ऐसा नहीं है पर उन्हें भरोसा नहीं है कि कांग्रेस औरतों और लड़कियों के लिए लडऩे का मूड बना कर रख रही है. मेराथन कराने में कुछ ज्यादा नहीं होता. यह तो खेल भर है. औरतों को तो जरूरत है किसी ध्यान रखने वाले की जो उन संकरी मैली बदबूदार गलियों में जा सके जहां औरतों को रोज हजार आफतें सहनी पड़ती है.
जो दल जीत रहे हैं उन की खासियत यही है कि नारों के साथसाथ वे अपनी बात कोनेकोने में पहुंचाते हैं. उन के कार्यकर्ता कर्मठ हैं और पीढिय़ों से घर बैठे खाने के आदी नहीं हैं. लड़कियों की मुसीबतें आज भी हजार हैं. कहने को उन्हें पढऩे की औपरच्यूनिटी मिल रही है पर असल में यह आधीअधूरी है. केवल बहुत ऊंचे पैसे वालों के घरों की लड़कियों के छोड़ दें तो बाकि के पास आज भी सैनेटरी पैड के लिए पैसे जुटाने तक में दिक्कत होती है. ‘लडक़ी हूं लड़ सकती हूं’ का नारा तो तब कामयाब होगा जब यह लड़ाई विधानसभा की सीटों के लिए नहीं घर में बराबरी का दर्जा पाने, सही हवा, सही आजादी के लिए हो.