जब से कोविड-19 के कारण वर्क फ्रौम होम शुरू हुआ और टैक्नोलौजी ने उसे बल दिया, शुरू में पत्नियों को लगा कि यह तो वरदान है पर अब जब यह कोविड के बाद भी चलता जा रहा है, घर से बाहर की विशेषता पता चलने लगी है. अब पता चलने लगा है कि वास्तव में दफ्तर में जा कर काम करने वाले पति या पत्नी असल में कितना काम करते थे, कितनी मौज करते थे.इंडस्ट्रियल या सेल्स जौब्स की छोड़ दें तो अब विशाल दफ्तरों में होने वाला काम कंप्यूटरों से ही होता है और हर डैस्क पर एक कंप्यूटर लगा होता है. कभीकभार मीटिंग कमरे में मिलते हैं, प्रेजैंटेशन देते हैं, डिस्कशन करते हैं पर कोई पहाड़ नहीं खोदा जाता, कोई सामान नहीं उठाया जाता.

असल में दफ्तरों में होता क्या है यह पतियों और पत्नियों को अब पता चलने लगा है.ब्रिक ऐंड मोर्टर कंपनियों के अलावा सारी नौकरियों में 7-8 घंटे औफिस में रहने के बावजूद वर्कर आधापौना टाइम बेकार की गप में लगाते हैं. मिनटों नहीं घंटों टौयलेट जाने के बहाने इधरउधर घूमते हैं. मीटिंगों के नाम पर समय बरबाद करते हैं क्योंकि किसी भी मीटिंग में 2-4 मिनट मिलते हैं कुछ कहने के. मीटिंग में 2-3 लोगों का काम लैक्चर    झाड़ना होता है, बाकी चुपचाप सुनते हैं और मन में खयाली पुलाव बनाते रहते हैं या ताकते रहते हैं कि किस लड़की की ड्रैस का ब्लाउज कितना गहरा है या किस लड़की के बालों में हाथ फिराने में कितना मजा आएगा.वर्क फ्रौम होम से यह पोल खोली जा रही है कि असल में दफ्तरों में कितना काम होता है.सब काम करने के बावजूद रात को 2 बजे जूम मीटिंग इंटरनैशनल बायर के साथ करने के बावजूद, कंप्यूटर पर रिसर्च करने के बावजूद, घंटों घर के सोफे पर मजे करे जा रहे हैं या जूम मीटिंग के साथ पास रखे मोबाइल पर इंडिया वर्सेज पाकिस्तान का मैच देखा जा रहा है.

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