Ruma Devi : गृहशोभा अवार्ड फंक्शन में जिन महिलाओं के नामों ने खूब तालियां अर्जित कीं और भूरीभूरी प्रशंसा पाई उन में सब से ऊपर हैं रेत के नगर बाड़मेर में जन्मीं रूमा देवी, जिन्होंने अपने अथक प्रयाओं और कामों से न सिर्फ अपना जीवन उत्कृष्ट बनाया बल्कि उन का जुझारूपन बीते कई वर्षों से देश की अनेकानेक महिलाओं की जिंदगी संवार रहा है.
रूमा देवी के उत्कृष्ट कार्यों को देश कई सालों से देख रहा है. उन के कार्य, क्षमता और कला अतिसम्माननीय है. उन्होंने 40 हजार से अधिक महिलाओं को रोजगार से जोड़ा है. रूमा देवी ने 5 साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था. इस के बाद उन के पिता ने दूसरा विवाह कर लिया. मां के प्यार से वंचित रूमा देवी ने अपनी दादी के साथ रह कर उन से सिलाईकढ़ाई की कला सीखी, साथ ही वे पढ़ाई भी कर रही थीं. मगर घर की आर्थिक हालत अच्छी न होने की वजह से उन्हें 8वीं कक्षा के बाद ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. जल्द ही उन का विवाह कर दिया गया जैसा आमतौर पर भारत के गांवदेहातों में होता है.
काम करने की ठानी
2008 में रूमा ने अपनी पहली संतान को जन्म दिया. वे अपनी पहली संतान को पा कर बहुत खुश थीं मगर फिर एक दिन अचानक बच्चा बीमार पड़ गया और पैसों की तंगी के कारण रूमा देवी उसे डाक्टर को नहीं दिखा पाईं. 2 दिन बाद ही उन्होंने उस मासूम को खो दिया. रूमा इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पा रही थीं. तब उन्होंने काम करने की ठानी ताकि पैसे की तंगी उन की खुशियों के आड़े फिर कभी न आए.
रूमा ने लगभग 10 महिलाओं से 100-100 रुपए इकट्ठा कर के एक सैकंड हैंड सिलाई मशीन खरीदी. इस मशीन से उन्होंने छोटेछोटे प्रोडक्ट्स तैयार करने शुरू किए. जैसे छोटे बैग, कुरतियां, राजस्थानी लहंगे और उन पर दादी से सीखे कढ़ाई के हुनर को उकेरा. यह सामान तो जबरदस्त सुंदर नजर आता था मगर उन के सामने बड़ा सवाल यह था कि इस सामान को बेचा कैसे जाए ताकि जिस लक्ष्य के लिए काम शुरू किया है उसे हासिल किया जाए.
रूमा ने कुछ दुकानदारों से बात की और उन्हें मनाया. इस तरह धीरेधीरे उन के प्रोडक्ट्स बिकने भी लगे और उन्हें और काम भी मिलने लगा. काम के लिए ही 2009 में रूमा देवी ग्रामीण विकास व चेतना संस्थान पहुंची और इस के बाद रूमा ने अपनी साथी महिलाएं इस संगठन का हिस्सा बन गईं.
साकार हुई सोच
कुछ ही समय बीता होगा कि रूमा की लगन और लीडरशिप क्वालिटी देख कर ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान ने उन्हें अपना प्रैसिडैंट बना दिया. रूमा की सोच विस्तार पा रही थी. उन की कला में राजस्थान की मिट्टी का सोंधापन विदेशी ग्राहकों को भी अपनी ओर खींच रहा था. रूमा ने सोचा कि वे अपने काम को विदेश तक ले जाएंगी. बस फिर क्या था उन की सोच साकार होने की दिशा में बढ़ गई. उन्होंने राजस्थान की ट्रैडिशनल सिलाईकढ़ाई को बड़े स्केल पर ले जाने का फैसला कर लिया. उन के कई शो विदेशी मंचों पर आयोजित हुए, जिन्होंने उन के पंखों को और परवाज दी.
2018 में रूमा को नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान किया गया. 2025 गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड के लिए उन के नाम का चयन ज्यूरी के सदस्यों द्वारा किया गया. रूमा इस अवार्ड को प्राप्त कर बहुत खुश हैं.
वे कहती हैं कि मुश्किलें तो सब के जीवन में आती हैं लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है हौसला रखना और अपने हुनर को अपनी पहचान बना कर आत्मनिर्भर बनाना. महिलाओं को वे सिर्फ संदेश देती हैं कि अड़े रहो, खड़े रहो. उन के इन 4 शब्दों में ही बड़ी ताकत और हौसला झलकता है.