लीक से हटकर काम करना और उसे एक दिशा देना आसान नहीं होता, ये संभव तभी हो पाता है, जब उसमें आपका परिवार साथ दे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें, ऐसी ही मजबूत इरादों के साथ मुंबई की सामाजिक कार्यकर्ता सबा खान अपनी संस्था ‘परचम’ के साथ काम कर रही है. उसने मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों की आज़ादी को महत्व दिया है, जो घरेलू अत्याचार सहे बिना उसका विरोध करने में सक्षम है. ऐसा करते हुए उन्हें कई उलाहने और ताने भी सुनने पड़े, पर वह अपने काम में अडिग रही. इसकी प्रेरणा कहाँ से मिली पूछे जाने पर सबा कहती है कि स्कूल में सोशल वर्क का कर्रिकुलम था, वहाँ काम करते करते इस क्षेत्र में रूचि बन गयी. इसके बाद टाटा इंस्टिट्यूट से मैंने सोशल वर्क में मास्टर किया. इससे अलग-अलग और्गनाइजेशन में काम करने का अवसर मिला. इस दौरान मुझे ‘अंजुमन इस्लाम’ के एक प्रोजेक्ट,जो बांद्रा में मुसलमान औरतों के लिए काम करती थी. वहां उन औरतों के साथ उनके घरेलू समस्याएं, काउंसलिंग आदि करती थी, ऐसे ही आगे बढ़ते-बढ़ते मैंने अपनी एक संस्था के बारें में सोची, क्योंकि किसी संस्था के अंतर्गत काम करने से उनके द्वारा दिए गए काम को ही करना पड़ता है. खुद की सोच को आगे ले जाने का मौका नहीं मिलता. ऐसे में कुछ लड़कियों ने मेरा साथ दिया और साल 2012 में अपनी संस्था ‘परचम’ खोली. जिसका उद्देश्य महिलाओं की सोच को खुलकर आगे लाने की थी. टीम में 7 महिलाये कोर में है. बाकी 200 सदस्य है.
ये भी पढ़ें- अकेले रहती हूं. हां मैं एक लड़की हूं.