लड़कियां कितनी असुरक्षित हैं, खासतौर पर अपनों के हाथों, दिल्ली के एक मामले से स्पष्ट है. इस मामले में एक 12 वर्ष की लड़की की मां ने उस के चचेरे भाई पर बलात्कार का मामला दर्ज कराया था. पर वह चचेरा भाई बरी हो गया. दरअसल, शिकायत करने वाली मां ने, शिकार लड़की ने और मैडिकल जांच ने भी जब मामला अदालत में पहुंचा तो बयान ऐसे दिए गोया मामला सिर्फ रंजिश के कारण दर्ज किया गया हो. मां ने कह दिया कि पड़ोसियों के उकसाने पर शिकायत की गई और लड़की ने कह दिया कि आरोपी उसे पागल कह कर चिढ़ाता था. जज के पास उसे छोड़ने के अलावा कोई चारा न था. यह कहना आसान नहीं है कि इस मामले के बाद परिवार में आपसी दबाव और रजामंदी हुई थी या वास्तव में मामला झूठा था. पर जिस तरह मामला पुलिस थाने से हो कर अदालत पहुंचा उस से इतना तो साफ है कि इस तरह के मामले होते रहते हैं जिन में छोटी लड़कियां अपनों की ही हवस की शिकार बनती हैं.

बलात्कार के मामलों में अपनों पर मुकदमा चलाना बहुमुखी तलवार बन जाता है. अपना जेल चला जाए तो घरपरिवार बिखर जाता है. संबंधियों में सदा के लिए दुश्मनी हो जाती है. अपनों के प्रति शक हो जाता है. जो शिकार बनी उस की जिंदगी तो खराब होती ही है बाकी लड़कियां भी दहशत के माहौल में जीने को मजबूर हो जाती हैं. दोनों तरफ के लोगों को पुलिस व वकीलों पर मोटा पैसा खर्च करना पड़ता है और कमाऊ सदस्यों को कामधाम छोड़ कर फालतू में थानों, वकीलों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. एक शिकायत मानसिक रूप से तो भारी होती ही है, आर्थिक रूप से भी. फिर सामाजिक तौर पर भी घातक होती है. ऐसे समाज का क्या लाभ जहां लड़कियां अपने को सुरक्षित न समझें? बलात्कार, अनचाहा जबरन सैक्स शराब और नशे की तरह घरपरिवार को खोखला करता है. लड़कियों की उम्मीदों को कुचलता है. क्या इतना पाठ भी पढ़ाना संभव नहीं है?

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