नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि हिंसा और डर की चपेट में बच्चे सब से ज्यादा आते हैं. ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें हिंसा और डर से मुक्त जीवन प्रदान करें. मगर आज बच्चों को सुरक्षित माहौल देना बहुत मुश्किल काम हो गया है. रोजरोज होने वाली बालशोषण, रेप, किडनैप की घटनाओं ने मातापिता को बहुत चिंतित कर दिया है. टीवी पर ऐसी घटनाओं को देखते रहने के बाद 35 वर्षीय स्नेहा ने महसूस किया कि अपनी 10 वर्षीय बेटी सिया को गुड टच, बैड टच बता देना ही पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अपनी बेटी को एक पासवर्ड दिया और कहा कि यदि कोईर् हमारा नाम ले कर उसे कुछ खाने के लिए दे और कहीं चलने के लिए कहे तो वह उस से पासवर्ड पूछे. उस ने अपने पति और बेटी के साथ कई कोडवर्ड बनाए ताकि उन की बेटी सुरक्षित रहे.

स्नेहा की तरह कई मातापिता ऐसा कर रहे हैं. वे अपने बच्चों को अलर्ट रह कर किसी भी मुश्किल से निबटने के लिए ट्रेनिंग दे रहे हैं. इधरउधर घूमते असामाजिक तत्त्वों से निबटने के लिए अब यह आवश्यक भी हो गया है.

ये तरीके अपनाएं

बच्चे मासूम होते हैं. वे किसी पर भी आसानी से विश्वास कर लेते हैं. बेटियों की मां नमिता बताती हैं, ‘‘यदि कोई अजनबी बच्चों को चौकलेट औफर करता है, तो अकसर वे ले लेते हैं. मैं ने बेटियों को समझा दिया है कि उन्हें जो कुछ भी चाहिए मैं उन्हें ले कर दूंगी. उन्हें किसी भी अजनबी से कुछ नहीं लेना है. मैं उन्हें ज्यादा नैगेटिव चीजें नहीं बताती हूं ताकि कहीं उन के मन में डर न बैठ जाए.’’ टीचर पारुल देशमुख ने आवश्यकता पड़ने पर अपने बेटे को ताकत लगाना सिखाया है. उन का कहना है, ‘‘मैं ने अपने बेटे से कहा है कि यदि कोई उसे जबरदस्ती पकड़ने की कोशिश करे तो वह जोर से चिल्लाए. मैं ने घर पर इस की प्रैक्टिस भी करवाई है. उसे बताया है कि वह उस व्यक्ति का हाथ जोर से काट ले और जैसे ही उस व्यक्ति का ध्यान बंटे, वहां से भाग ले.’’

7 वर्षीय बेटे के पिता बिजनैसमैन दीपक शर्मा कहते हैं, ‘‘मैं ने एक वीडियो देखा था जिस में बच्चों को उन में डैंजर पौइंट्स दिखा कर समझाया जाता है कि यदि कोई इन जगहों को छूने की कोशिश करे तो बच्चे जोर से चिल्लाएं और भाग कर भीड़ वाली जगह चले जाएं. इस घटना के बारे में किसी विश्वसनीय बड़े को बताएं. मैं ने यह वीडियो अपने बेटे को भी दिखाया है और हम उस के सामने यह निर्देश समयसमय पर दोहराते रहते हैं.’’ चाहे शिक्षाप्रणाली में यह शामिल हो या नहीं, मातापिता सैल्फडिफैंस का महत्त्व समझने लगे हैं.

2 बच्चों की मां राधा श्रीवास्तव का कहना है, ‘‘आर्ट, म्यूजिक और डांस क्लास की तरह स्कूल में सैल्फडिफैंस की क्लास भी जरूर होनी चाहिए और 5 साल की उम्र से यह ट्रेनिंग मिलनी चाहिए.’’

कराटे या भरतनाट्यम 9 वर्षीय इशिता के मातापिता ने इन में से इशिता को कराटे सिखाना ही ज्यादा जरूरी समझा. उस की मम्मी ने बताया, ‘‘हम इंतजार कर रहे थे कि इशिता 8 साल की हो जाए तो उसे भरतनाट्यम सिखाएंगे पर जब हम उसे क्लास ले कर गए तो पता चला कि वे कराटे भी सिखाते हैं. हम चाहते थे कि बेटी दोनों चीजें सीख ले पर समय कम था तो हम ने आज के वक्त की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उसे सैल्फडिफैंस सिखाया. मैं ने देखा है कि कराटे सीखने वाले बच्चे ज्यादा अलर्ट रहते हैं. फिटनैस के प्रति उन का दृष्टिकोण काफी सकारात्मक रहता है. बाद में कभी समय मिलने पर इशिता डांस भी सीख लेगी पर अभी कराटे सीखना ज्यादा जरूरी है.’’

समयसमय पर बात करें जब भी मातापिता को समय मिले, वे बच्चे से जरूर बात करें, उन के स्कूल के बारे में पूछें. 6 साल की गरिमा की मम्मी कहती हैं, ‘‘वे दिन गए जब हम बच्चों से सिर्फ उन की पढ़ाई और होमवर्क के बारे में ही बात करते थे. उन से टीचर्स, चपरासी, बस ड्राइवर के बारे में बात करते रहना चाहिए. वे किसी से असहज तो नहीं हैं, यह पता करते रहना चाहिए, उन्हें किसी से न डरने की सीख देते रहना चाहिए, उन्हें बोल्ड बनाते रहना चाहिए.’’

बच्चों के साथ बातें करते हुए मातापिता को घर में एक स्वस्थ माहौल बनाए रखना चाहिए. उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि मातापिता हर स्थिति में उन की बात सुनेंगे. इस से उन के मन में कोई डर नहीं रहता है. अपने बच्चों की अच्छी हैल्थ और सुरक्षा हर मातापिता की प्राथमिकता होनी चाहिए. मातापिता हर समय बच्चों के साथ नहीं रह सकते पर उन्हें अतिआवश्यक सुरक्षासंबंधी निर्देश दे कर सजग जरूर बना सकते हैं.

मातापिता बच्चों के साथ जितना संभव हो सके बात करते रहें. उन्हें गुड टच और बैड टच के बारे में जरूर बताएं. बच्चों को सैल्फडिफैंस सिखाएं, दिन कैसा रहा, इस से संबंधित प्रश्न पूछते रहें. मातापिता पर विश्वास रख कर वे उन से सब कुछ शेयर कर सकते हैं, यह एहसास बच्चों को करवाते रहें.

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