समलैंगिक विवाह को लेकर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है. याचिकाकर्ताओं ने शादी को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता नहीं दी. याचिका दाखिल करने वालों में सेम सेक्स कपल्स, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ संगठन शामिल थे. आपको बता दें कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर ली थी लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया था. 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और याचिका में समलैंगिक विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की थी. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे. जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि शादी का अधिकार सिर्फ वैधानिक अधिकार है संवैधानिक अधिकार नहीं.
LGBT कम्युनिटी समेत DU के छात्रों ने तो ‘गे प्राइड मार्च’निकाला, सेम सेक्स मैरिज मुद्दे पर कोर्ट के फैसले को लेकर जमकर प्रदर्शन किया. इस रैली का उद्देश्य विवाह समानता की मांग करना और सेम सेक्स मैरिज पर कोर्ट के फैसले पर नाराजगी व्यक्त करना था. जिसका जमकर विरोध किया गया.
सेम सेक्स मैरिज पर क्या बोले औवैसी ?
सेम सैक्स मैरिज को लेकर राजनीतिक बयानों की भी कमी नहीं रही, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी राय दी. औवैसी ने ट्वीट कर कहा- कि सुप्रीम कोर्ट संसदीय सर्वोच्चता के सिद्धांत को बरकरार रखा है. यह तय करना अदालतों पर निर्भर नहीं है कि कौन किस कानून के तहत शादी करेगा. मेरा विश्वास और मेरी अंतरात्मा कहती है कि शादी केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होती है. यह 377 के मामले की तरह गैर-अपराधीकरण का सवाल नहीं है, यह विवाह की मान्यता के बारे में है. यह सही है कि सरकार इसे किसी एक और सभी पर लागू नहीं कर सकती.