एक भारतीय के लिए यह कल्पना भी सिहरा देने वाली है कि एक दिन गंगायमुना जैसी नदियां नहीं रहेंगी. गंगा की विदाई की बात तो आम आदमी सोच नहीं पाता, लेकिन धीरेधीरे यह आशंका गहरा रही है. गंगायमुना दुनिया की उन नदियों में से हैं जिन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. साल 2014 में पर्यावरण संरक्षण से संबद्घ संस्था डब्लूडब्लूएफ ने इस खतरनाक तथ्य का खुलासा किया था. उस के मुताबिक गंगायमुना के अलावा सिंधु, नील और यांग्त्सी भी संकटग्रस्त हैं. डब्लूडब्लूएफ का कहना है कि निरंतर बढ़ते प्रदूषण, पानी के अत्यधिक दोहन, सहायक नदियों के सूखने, बड़े बांधों के निर्माण और वातावरण में परिवर्तन से इन बड़ी नदियों के लुप्त होने का संकट पैदा हो गया है.
भारत में आज सब से अहम चर्चा गंगा को ले कर है. नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा को पुनर्जीवन देने का ऐलान अपने घोषणापत्र में किया था और अपने वादे के मुताबिक, उमा भारती को गंगा सफाई का एक पृथक मंत्रालय दे कर इस बारे में अपनी सदिच्छा भी दर्शा दी थी. पर अब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार निवासी एक मुसलिम व्यक्ति मोहम्मद सलीम की जनहित याचिका पर अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए इन दोनों नदियों को जीवित इंसान जैसे अधिकार देने की बात कही है.
अदालत के इस फैसले से गंगायमुना को देश के संवैधानिक नागरिक जैसे अधिकार हासिल हो गए हैं, जिन के तहत इन के खिलाफ और इन की ओर से मुकदमे सिविल कोर्ट तथा अन्य अदालतों में दाखिल किए जा सकेंगे. इन नदियों में कूड़ा फेंकने, पानी कम होने, अतिक्रमण की स्थिति में मुकदमा हो सकता है और गंगायमुना की ओर से मुख्य सचिव, महाधिवक्ता, महानिदेशक आदि मुकदमा दायर कर सकेंगे.
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