अर्थशास्त्रियों का मत है कि जितना कमाएं उस में से 20 फीसदी पैसा भविष्य के लिए जमा करें. जो ऐसा नहीं करता वह अंत समय में आई परेशानी या अकस्मात आई मुसीबत के समय दूसरों का मुंह देखता है. ऐसे समय में सुनाने वाले या मदद देने वाले भी यही कहते हैं कि सारी जिंदगी कमाते रहे और खाते रहे. ऐश में सब उड़ाया लेकिन इस वक्त के लिए कुछ न बचाया.
जरूरी है कि शुरू से ही बचत की आदत डाली जाए, हाथ खींच कर पैसा खर्र्च किया जाए, अपनी कमाई में से जितना अधिक बचा सकें, बचाया जाए ताकि रिटायरमैंट के बाद जेब खाली न रहे. और कल सुरक्षित रहे.
बच्चों पर अंधाधुंध खर्च न करें : अकसर पेरैंट्स अपने बच्चों के चेहरों पर मुसकान देखने के लिए उन की हर मांग पूरी करने की कोशिश करते हैं. चाहे उन के लिए उन्हें अपनी जमापूंजी खर्च करनी पड़े या फिर किसी से उधार लेना पड़े. ऐसा करने से बच्चे भले ही खुश हो जाएं लेकिन इस से नुकसान आप का ही होता है. एक बार अगर आप ने उन की जिद पूरी की तो अगली बार से वे आप के सामने फरमाइशों की लिस्ट रखनी शुरू कर देते हैं. तब, आप को, न चाहते हुए भी, उन्हें पूरा करना पड़ता है.
शुरू से ही कंट्रोल रखें यानी जब जरूरत हो, चीज तभी दिलवाएं. जैसे, अगर आप ने अपने बच्चे को 2 महीने पहले ही मोबाइल दिलवाया है और 4 महीने बाद बच्चा फिर कोई दूसरे मोबाइल की डिमांड करने लग जाए तो आप उस की इस मांग को पूरा न करें बल्कि शुरू से समझा कर चलें कि अगर हम आज बचा कर नहीं चलेंगे तो कल तुम्हें उच्च शिक्षा कैसे दिलवा पाएंगे. इस से वे आप को समझेंगे. लेकिन ऐसे प्रयास शुरूआत से करने जरूरी हैं.