सुप्रीम कोर्ट ने एक नए फैसले में 157 साल पुराने कानून, जिस में किसी अन्य की पत्नी के साथ स्वेच्छा से यौन संबंध बनाने पर भी दंड दिया जा सकता है, असंवैधानिक करार कर दिया है. यह कानून अपने आप में अनैतिक था और हमेशा ही इस पर आपत्तियां उठती रही हैं, पर पहले हिंदू कानून और फिर अंग्रेजी कानून बदला नहीं गया. रोचक बात यह है कि यदि पति किसी के साथ संबंध बनाए तो पत्नी को यह हक नहीं था कि वह शिकायत कर सके. एक और रोचक बात इस कानून में थी कि गुनाहगार पत्नी नहीं परपुरुष ही होता था.
इस कानून का आधार यह था कि पत्नियां पतियों की जायदाद हैं और परपुरुष उन से संबंध बना कर संपत्ति का दुरुपयोग न करें, यदि पति इजाजत दे दे तो यह कार्य दंडनीय न था. यानी मामला नैतिकता या विवाह की शुद्धता का नहीं, मिल्कीयत का था.
पहले 2-3 बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है और उस को एकतरफा होने के कारण असंवैधानिक करने की मांग की जा चुकी है पर अदालतों ने हस्तक्षेप नहीं किया और संसद ने यह कानून नहीं बदला. अंग्रेजों को दोष देने की जगह असल में भारतीय संसद इस कानून के लिए जिम्मेदार है जिस ने 70-75 साल इसे थोपे रखा.
यह कानून वैसे निष्क्रिय सा ही था और बहुत कम मामले दर्ज होते थे. पर फिर भी विवाहित औरत और उस के प्रेमी पर तलवार तो लटकी रहती थी कि न जाने कब पति शिकायत कर दे और प्रेमी जेल में बंद हो जाए और पत्नी पति का घर छोड़ कर प्रेमी के साथ रहने से कतराती थी कि कहीं पुलिस मामला न बन जाए पर पत्नी के पास यह अधिकार न था कि वह किसी और विवाहिता या अविवाहिता के साथ रहने वाले पति पर मुकदमा दायर कर सके.
हां वैवाहिक कानून इस मामले में दोनों को तलाक लेने का हक बराबर का है पहले से ही पर प्रक्रिया लंबी है और थाने के चक्कर वकीलों के चक्करों से ज्यादा दुखदायी होते हैं.
पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह अनैतिक वाले व्याभिचार हैं और परपुरुष को ही अपराधी बनाना गलत नहीं, क्योंकि इस से गैरपुरुष के साथ यौन संबंध बनाने वाली औरत को सुरक्षा व संरक्षण मिलता है. सुप्रीम कोर्ट बराबर का मतलब मान रही थी कि पत्नी पर भी मुकदमा चले.
अब के फैसले में यह कहा गया है कि पत्नी पर भी आपराधिक मामला नहीं बनेगा, उस के प्रेमी पर भी नहीं. इस फैसले का मतलब अब यह भी है कि लोकसभा भी कानून नहीं बना सकती क्योंकि यह गैरसंवैधानिक घोषित कर दिया गया है. यदि संसद पहले से कानून बना कर कुछ करती तो गुंजाइश थी कि संसद मनचाहा बीच का रास्ता अपना लेती.
यह सैक्स संबंधों में उदारता का लाइसेंस नहीं है, यह सभी पुरुष के संबंधों को थानेदारों से बचाने का कवच है. पतिपत्नी संबंध आपसी सहमति का संबंध है, इस में कानून की सहायता से जोर जबरदस्ती नहीं चलनी चाहिए. नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले और हिंदू संस्कृति की दुहाई देने वाले अगर अपने इन ग्रंथों के पृष्ठ खंगाले, जिन देवीदेवताओं को पूजते हैं तो पता चलेगा कि लगभग हर देवीदेवता के विवाहेतर संबंध रहे हैं.
भारतीय समाज में घरों में भी और बाजारों में भी सैक्स का खुलापन आज भी है और हम जो शराफत का ढोल पीटते हैं वह केवल इसलिए कि हम अपनी खामियों को छिपा कर रखने में सफल रहे हैं. हम हर उस व्यक्ति का मुंह तोड़ सकते हैं जो सच कहने की हिम्मत करता है और महान भारतीय हिंदू संस्कृति का राज केवल यहीं तक सीमित है. आज जो बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं, इसीलिए कि औरतों को संपत्ति मानने की तो सामाजिक सांस्कारिक सहमति पहले से ही है. अगर औरत सड़क पर दिखे तो उन को उठा कर ऐसे ही इस्तेमाल करा जा सकता है जैसे सड़क पर पड़े 2000 रुपए के नोट को.
पति पत्नी संबंध बराबर के हों, मधुर हों, सुखी हों, यह जिम्मेदारी पति पत्नी दोनों की है, बराबर की है. कानून की धौंस दे कर अब पति अपनी पत्नी को किसी और से बात करने पर धमका नहीं सकता. यह नैतिक, प्राकृतिक और मौलिक अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट ने देर से ही सही, सही दिया है. चिंता न करें, समाज को कुछ नहीं होगा.