सलमान खान की नई फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ ने रिकौर्ड तोड़ सफलता पाई है और काफी दिनों बाद भारतपाकिस्तान के बीच दोस्ताना संबंधों वाली फिल्म को लोगों ने हाथोंहाथ लिया है. फिल्म में तार्किकता तों न के बराबर है पर यह अब पता चल रहा है कि बहुत से बजरंगी भाईजानों की जरूरत है, जो बिछुड़े बच्चों को सरहद के इस या उस पार अपनों से मिलवा सकें. बच्चों के बिछुड़ने पर अब तक कुंभ मेले, बाढ़ या भूकंप पर ही फिल्में बनती रही हैं. मगर इस फिल्म में एक गूंगी पर सुंदरसलोनी बच्ची की कहानी है, जो पाकिस्तान से आई और मां से लौटते समय बचकानेपन में ट्रेन से उतर कर बिछुड़ गई. ऐसी बच्ची को, जिस के मातापिता का नामपता मालूम न हो, लौटाना आसान नहीं है. इस पर सलमान खान ने जो कहानी बुनी वह अविश्वसनीय है पर अच्छी परियों की सी लगती है. भारत और पाकिस्तान को दुश्मन मानने वालों की दोनों ही देशों में कमी नहीं है. भारत में कुछ ज्यादा ही है, क्योंकि विभाजन की कसक भारत में ज्यादा है. विभाजन ने दिलों पर पत्थर की लाइनें खींच दीं और कब उन्हें मिटाया जा सकेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. सोशल मीडिया का उपयोग कट्टर हिंदू लगातार मुसलमानों और पाकिस्तान के विरुद्ध जहर उगलने के लिए कर रहे हैं. ऐसा ही पाकिस्तान में भी हो रहा है.

ऐसे सड़ांध भरे माहौल में दोनों देशों में साधारण दिलवाले लोग रहते हैं, दिखाना हिम्मत की बात है और चाहे जो पैसे बने हों, यह कोशिश करना भी अपनेआप में सफलता ही है. इस में दोराय नहीं कि दुनिया के सब से ज्यादा गरीब, गंदे, बदबूदार, भ्रष्ट, बेईमान, निकम्मे, आलसी, धर्मांध इलाके के 3-4 देशों-भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान, नेपाल को अगर वास्तव में चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, सिंगापुर, ताईवान जैसी उन्नति करनी है तो युद्ध और बैरभाव का माहौल दरिया में बहा कर काम करना होगा. दोनों तरफ के नेताओं का आज जो मुख्य काम है दुश्मनी को धार देना वह छोड़ना होगा और व्यापार, दोस्ती के जरीए अपनेअपने देश में प्रगति की बात सोचनी होगी. विभाजन तो हो गया पर उस का यह मतलब नहीं कि एकदूसरे के लिए घर के दरवाजे भी बंद कर दिए जाएं. एक बच्ची छूट गई तो क्या हुआ? दोनों तरफ की पुलिस को उसे अपनों से मिला देना चाहिए था न कि कानून, नियम, वीजा, नागरिकता का हवाला दे कर मिलने देने से रोकना चाहिए था.

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