कोलकाता की रहने वाली 17 साल की मारवाड़ी परिवार की चंदा झावेरी 1984 में घर से इसलिए भाग गईं, क्योंकि उन के मांबाप जबरदस्ती उन की शादी करा रहे थे. जबकि जिंदगी को ले कर उन के सपने कुछ और ही थे. वे नोबल प्राइज जीतना चाहती थीं.

3 दशक बाद जब चंदा वापस लौटीं तो अमेरिका की मिलेनियर ऐंटरप्रन्योर बन कर और यह मुमकिन हुआ उन की कठिन मेहनत, लगन व हौसलों की वजह से.

घर छोड़ते वक्त चंदा के पास केवल 1 जोड़ी हीरे के इयररिंग्स थे, जिस से उन्होंने ब्रिटिश एअरवेज का टिकट खरीदा और बोस्टन पहुंचीं.

वहां पहुंच कर चंदा ने कठिन मेहनत की. अमेरिकी बुजुर्गों के लिए मेड तक का काम किया. साथ में ऊंची पढ़ाई भी की और अंतत: एक दिन उन्होंने अपनी ऐक्टिजन कंपनी की स्थापना कर अपना सपना पूरा किया. आज इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों का है. जो पड़ोसी और रिश्तेदार उन की वजह से उन के परिवार का मजाक उड़ाते थे, उन्हीं लोगों की नजरों में आज चंदा का कद काफी ऊंचा उठ चुका है.

जाहिर है, हौसलों की उड़ान ऊंची हो तो बुलंदियों तक पहुंचना मुश्किल नहीं. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह स्त्री है या पुरुष या फिर उस की उम्र क्या है और वह किस देश का वासी है.

परिश्रम व लगन

कल्पना सरोज की कहानी भी कम प्रेरक नहीं. इन्हें आप स्लमडौग मिलेनियर भी कह सकते हैं. पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित सरोज वर्तमान समय में कमानी ट्यूब्स कंपनी की अध्यक्षा हैं. खास बात यह है कि वर्ण व्यवस्था के सब से निचले स्तर पर आने के बाद भी उन्होंने अपने लिए जगह बनाई.

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